प्रजामंडल : श्रीनाथ सिंह हिंदी उपन्यास | Prajamandal : Shrinath Singh Hindi Novel के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : प्रजामंडल है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shrinath Singh | Shrinath Singh की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Shrinath Singh | इस पुस्तक का कुल साइज 26.62 MB है | पुस्तक में कुल 124 पृष्ठ हैं |नीचे प्रजामंडल का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | प्रजामंडल पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Prajamandal | This Book is written by Shrinath Singh | To Read and Download More Books written by Shrinath Singh in Hindi, Please Click : Shrinath Singh | The size of this book is 26.62 MB | This Book has 124 Pages | The Download link of the book "Prajamandal" is given above, you can downlaod Prajamandal from the above link for free | Prajamandal is posted under following categories Stories, Novels & Plays |
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क परजामंडल र जि दिन की यह वात है उसी दिन एक और विचितर घटना कर घटी । एक हफ़ता पहले बीहड़ में एक सरकस कमपनी आई हुइ थी । उसने दो खेल दिखाए थे और तीसरा खेल उसी दिन रात को होने वाला था परनतु किसी वात को लेकर सरकस कमपनी में और राजय के करमचारियों सें मतभेद हो गया था और नींवत यहाँ तक रा पहुँची कि कमपनी को बिना खेल दिखाए ही डरा कूच करना पड़ा । भुवनमोहिनी का लिए हुए उसके अपहरणकरता जिस समय बाजार के बीच में पहुँचे सामने से सरकस वालों का काफिला आता दिखाई पड़ा । घोड़े हाथी ऊँट बकरे शेर भालू वनदर विवधि चिड़ियाँ । कोई कठहरे की बनद गाड़ी में कोई पैदल कोई ऊँटों पर चले रा रहे थे। सड़क यों ही तंग थी इस सरकस के काफिले से बिलकुल घिर सी गई थी। अवन- मोहिनी के अपहरण-करताओं के लिए इन लोगों के बीच से उसी तेज़ी से मोटर निकाल ले जाना समभव न था । डाइवर ने तेज़ी से हाने देना शुरू किया । काफिले पर इसका समुचित झसर हुआ । कमपनी के नौकर चाकर उस तेज़ी से आती हुई मोटर को माग देने के लिए परयननशील हो उठे । परनतु उनको कुछ देर तो लग ही गई और डराइवर को कार की गति कम करनी पड़ी । उसने पीछे घूम कर अपने साथियों की आओर देखा और कहा--मैंने पहले ही कहा था कि बाजार के बीच से निकलना ठीक न होगा । ये शैतान सरकस वाले भी इसी समय न जाने कहाँ से चा मरे । गपरजामंडल ७ उन दोनों में से एक वोला--कोई परवा नहीं बढ़े चलो । एक शमाघ को कुचल जाने दो | सो तो ठीक है । लेकिन कितनों को कुचला जायगा | इस बातचीत से भुवनमोहिनी को यह जञात हो गया कि अब वह बाज़ार के बीच में है और मटर के आगे बढ़ने में कुछ बाधाएँ हैं । सहायता पाने की आशा से उसने आँखें खोल दीं । सबसे पहले उसे ऊँट पर बैठी हुई वह सुनदरी दिखाई पड़ी जो इस सरकस कमपनी की जान थी। दूसरे दिन का सरकस भुवनमोहिनी ने देखा था । इस युवती की फुरती पर वह मुगध थी । उसके सामने वह दृशय नाच गया जब वह तेजी से दौड़ते हुए घोड़ों पर चढ़ती-उतरती थी । घोड़े से हाथी पर और हाथी से ऊँट पर जा पहुँचती थी और ऊँट की गरदन पर खड़ी होकर दरशकों का भिवादन करती थी । आह यदि भवनमोहिनी में भी ऐसी ही फुरती होती । उसके शरीर में शवनायास विजली सी गति पैदा हो गई । तेज़ झाँधी में जैसे वकष जड़ से उखड़ जाते को परयतनशीतत होता है केसे ही वह अपने टदय के तूफान का बल पाकर कार सं बाहर लुढ़क पड़ने के लिए सचेषट हो उठी । उसकी यह गति सामने से आती हुई ऊँट पर बैठी हुई उस सरकस सुनदरी ने भी देखी । उसे जान पड़ा जैसे भुवनमोहिनी उससे कह रही हो--वहन बचाओ । मेरी रकषा करो । वह बड़ी ही भावुक युवती थी । उसी कषण उसने अपना कतंवय निशचित कर लिया । एक खतरे से निकल चुकने के बाद वह दूसरे खतरे में पैर रखने को तैयार हो गई । इस राजय के शासक के परति उसके कमेचारियों के परति राजय के कण कण के परति उसके हृदय में पहले ही से अपूवे घुरणा उतपनन हो गई थी । परनतु उस घृणा को उसने वयकत नहीं किया था । -