प्रसाद जी की कला | Prasad Ji Ki Kala के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : प्रसाद जी की कला है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Unknown | इस पुस्तक का कुल साइज 6.1 MB है | पुस्तक में कुल 192 पृष्ठ हैं |नीचे प्रसाद जी की कला का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | प्रसाद जी की कला पुस्तक की श्रेणियां हैं : literature
Name of the Book is : Prasad Ji Ki Kala | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : Unknown | The size of this book is 6.1 MB | This Book has 192 Pages | The Download link of the book "Prasad Ji Ki Kala" is given above, you can downlaod Prasad Ji Ki Kala from the above link for free | Prasad Ji Ki Kala is posted under following categories literature |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
प्रसादजी का जन्म माघ शुक्ला १२, १६४६ को ऐसे कुल में हुआ था, जहाँ कहावत है सोने की कटोरी में दूध-भात खाते हैं। सुघनी साहु का घराना काशी में मशहूर है । वैश्य हलवाई समाज के बाहर भी इस घराने की खूब मान-प्रतिष्ठा है। पितामह बाबू शिवरत्न ने जरदा, सुरती और तम्बाकू से कारोबार को बढ़ाकर खूब धन और यश पैदा किया, साथ ही दोनों हाथों से दान भी देते रहे। उनकी दानशीलता की कहानी अब भी काशी के बड़े-बूढ़ों की जबान पर है। कहते हैं, सब लोग साक्षात होने पर महादेव' शब्द उच्चारण कर उनका स्वागत करते थे। यह प्रतिष्ठा काशी-नरेश को छोड़ कर और किसी को प्राप्त नहीं । साहु शिवरत्न के सुपुत्र बाबू देवीप्रसाद ने अपने पिता और वंश की प्रतिष्ठा कायम रक्खी । उनके दो लड़के हुए-ज्येष्ठ शम्भुरत्न और कनिष्ठ जयशङ्कर ।