पुराणों में गंगा | Purano Me Ganga

पुराणों में गंगा | Purano Me Ganga

पुराणों में गंगा | Purano Me Ganga के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : पुराणों में गंगा है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shri Rampratap Tripathi | Shri Rampratap Tripathi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 68.0 MB है | पुस्तक में कुल 156 पृष्ठ हैं |नीचे पुराणों में गंगा का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुराणों में गंगा पुस्तक की श्रेणियां हैं : Spirituality -Adhyatm

Name of the Book is : Purano Me Ganga | This Book is written by Shri Rampratap Tripathi | To Read and Download More Books written by Shri Rampratap Tripathi in Hindi, Please Click : | The size of this book is 68.0 MB | This Book has 156 Pages | The Download link of the book " Purano Me Ganga " is given above, you can downlaod Purano Me Ganga from the above link for free | Purano Me Ganga is posted under following categories Spirituality -Adhyatm |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 68.0 MB
कुल पृष्ठ : 156

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भारत की नदियों में पवित्रता एवं माहात्म्य की दृष्टि से गंगा का स्थान सर्वोच्च कोटि का है। इतना ही नहीं अपने अनेक गुणों के प्रभाव से वह विश्व की श्रेष्ठतम नदी है । गंगोत्री से लेकर गंगा-सागर तक उसके सैकड़ों तीयों तथा अजस्रवाहिनी पावनधारा से जितने नर-नारी पशु-पक्षी तथा कीट-पतंग अपना ऐहिक और पारलौकिक कार्य चलाते हैं उतनी संख्या संभवतः विश्व की किसी महानदी को नहीं प्राप्त है। जो लोग नित्य गंगा में स्नान करने का पुण्यावसर नहीं निकाल पाते वे केवल दर्शन करने अथवा स्पर्श एवं आचमन करने के लिए थोड़ा-सा गंगा का जल ले जाकर अपने घरों में रखते हैं। और ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है। यहाँ तक तो बात कुछ समझ में आती है किन्तु उन लाखों-करोड़ों धार्मिक व्यक्तियों की अगाध श्रद्धा पर विचार करते समय विस्मय विमुग्ध होना पड़ता है जो स्नान-पूजनादि के समय गंगाजल के अभाव में केवल गंगा का नामस्मरण करते हैं। इस प्रकार प्रति दिन इस विशाल देश में करोड़ों व्यक्तियों द्वारा संस्मृत, ध्यानावस्थित, पूजित, मज्जित और पीत गंगा की महिमा की समानता भला विश्व में कौन नदी कर सकती है ? यही कारण है कि कल्पनातीत प्राचीन काल से लेकर आज तक गंगा की महिमा से हमारे साहित्य का जितना अंचल भरा गया है, उतना किसी अन्य नदी की महिमा से नहीं । सहस्रों वर्षों की उसकी अपार महिमा देश के कण-कण में व्याप्त हो गई है। और ऐसा मालूम पड़ता है कि आधुनिक युग के नवीनतम विश्व-आश्चर्य कर अविष्कार 'ऐटम बम' की इस चकाचौंध में भी उसकी लहरों की चमक छिपने वाली नहीं हैं और विज्ञान की समस्त शुनौतियों को स्वीकार कर भारत की धरती पर अनन्त काल तक इसी भांति वह अपनी अध्यात्म चेतना की अविरल धार बहाती ही जाएगी। वैज्ञानिक भले ही सीसी बोतलों में भरकर नई-नई खोज करके यह सिद्ध करें कि उसमें हिमालय की' औषधियों का विचित्र प्रभाव है जो उनके जल में कीटाणु नहीं पड़ते किन्तु घामक लोगों की वह पुण्य सलिला भगवान् विष्णु के पद से निकलने के कारण समस्त ऐहिक और पारलौकिक व्याधियों को हरनेवाली बनी ही रहेगी । गंगा के तट वासियों को नये वैज्ञानिकों की इस खोज से कुछ विशेष प्रेरणा नहीं मिलेगी, वे तो अनादि काल से यह मन्त्र याद करते आये हैं

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