कुरआन की शीतल छाया | Quraan Ki Sheetal Chhaya

कुरआन की शीतल छाया : डॉ. मोहम्मद जियाउर्रहमान आज़मी | Quraan Ki Sheetal Chhaya : Dr. Mohammd Jiyaurrhaman Aajami

कुरआन की शीतल छाया : डॉ. मोहम्मद जियाउर्रहमान आज़मी | Quraan Ki Sheetal Chhaya : Dr. Mohammd Jiyaurrhaman Aajami के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : कुरआन की शीतल छाया है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dr. Mohammd Jiyaurrhaman Aajami | Dr. Mohammd Jiyaurrhaman Aajami की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 55.8 MB है | पुस्तक में कुल 161 पृष्ठ हैं |नीचे कुरआन की शीतल छाया का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | कुरआन की शीतल छाया पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, islam

Name of the Book is : Quraan Ki Sheetal Chhaya | This Book is written by Dr. Mohammd Jiyaurrhaman Aajami | To Read and Download More Books written by Dr. Mohammd Jiyaurrhaman Aajami in Hindi, Please Click : | The size of this book is 55.8 MB | This Book has 161 Pages | The Download link of the book "Quraan Ki Sheetal Chhaya" is given above, you can downlaod Quraan Ki Sheetal Chhaya from the above link for free | Quraan Ki Sheetal Chhaya is posted under following categories dharm, islam |


पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 55.8 MB
कुल पृष्ठ : 161

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हमको इसका हुक्म ने भी देता तो भी इंसान इससे वंचित नहीं रह सकता था, क्योंकि जब हम अपने जन्म दिवस से लेकर बड़े होने तक के इस दौर पर विचार करते हैं तो बड़ी आसानी से यह बात समझ में आ सकती है कि माँ-बाप ही ने हमको पाल पोसकर बड़ा किया। अगर वह हमारी और ध्यान न देते तो हम एक दिन भी संसार में जीवित न रह सकते थे। इन्होंने हमारी शिक्षा-दीक्षा का अच्छे से अच्छा प्रबंध किया, अगर वे ऐसा न करते तो हम बिल्कुल मूर्ख रहते। अपने सुख चैन को तज कर हम पर अपनी गाढ़ी कमाई खर्च की, अगर वे ऐसा न करते तो हम एक-एक पाई के लिए तरस जाते। तो क्या वह व्यक्ति जिसने हमारे लिए यह सब कुछ किया उसके प्रति हमारा कर्तव्य नहीं। कुरआन ने इस सिलसिले में बड़ी शिष्टाचारमय एवं उत्तम शिक्षाएं दी हैं।
"और तेरे रब ने फैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत न करो, माँ बाप के साथ उत्तम व्यवहार करो, उन दोनों में से कोई एक या दोनों तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएं तो उनको 'उफ तक मत को और न उनको झिड़को बल्कि उनके साथ मीठी मीठी बातें करो और उनके लिए दयालुता के साथ विनम्रता की भुजा झुका दो और कहते हैं मेरे रच जिस प्रकार इन्होंने बचपन में मेरा पालन-पोषण किया तू भी इन पर दया कर।"(१७:२३, २४)
"और हमने इंसान को ताकीद की है कि वह अपने माँ और आप के साथ उत्तम व्यवहार करें। लेकिन अगर वे तुझ पर दबाव डालें कि तू किसी चीज़ को मेरा साझौ ठहराए जिसके बारे में तुझे कोई ज्ञान नहीं है तो उनकी इस बात को ठुकरा देना। (याद रखो कि) तुम्हें मेरी है ओर वापस लौट कर आना है फिर मैं बता दूंगा कि तुम क्या कुछ करते थे।"(२९.८) । इस आयत में एक खास बात यह बताई गई है कि अगर माँ-बाप ईश्वरीय आज्ञाओं का उल्लंघन कराएं तो संतान को चाहिए कि वह ऐसा करने से इंकार कर दें, क्योंकि ईश्वर ही ने हम को पैदा किया, उसने हमारे लिए दयायान, मां

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