सम्भोग से समाधी की ओर : ओशो हिंदी | Sambhog Se Samadhi Ki Aur : OSHO के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : सम्भोग से समाधी की ओर है | इस पुस्तक के लेखक हैं : osho | osho की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : osho | इस पुस्तक का कुल साइज 2.6 MB है | पुस्तक में कुल 438 पृष्ठ हैं |नीचे सम्भोग से समाधी की ओर का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सम्भोग से समाधी की ओर पुस्तक की श्रेणियां हैं : manovigyan, Spirituality -Adhyatm, suggested, vayask
Name of the Book is : Sambhog Se Samadhi Ki Aur | This Book is written by osho | To Read and Download More Books written by osho in Hindi, Please Click : osho | The size of this book is 2.6 MB | This Book has 438 Pages | The Download link of the book "Sambhog Se Samadhi Ki Aur" is given above, you can downlaod Sambhog Se Samadhi Ki Aur from the above link for free | Sambhog Se Samadhi Ki Aur is posted under following categories manovigyan, Spirituality -Adhyatm, suggested, vayask |
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यह आदमी पैदा हुआ है–पाँच छह जार, दस हजार वर्ष की संस्कृति का यह आदमी फल है।
लेकिन संस्कृति गलत नहीं है, यह आदमी गलत है। आदमी मरता जा रहा है रोज और संस्कृति की दुहाई चलती चली जाती है। कि महान संस्कृति महान धर्म, महान सब कुछ। | और उसका यह फल है आदमी। और उसी संस्कृति से गुजरा है और परिणाम है उसका ।
लेकिन नहीं आदमी गलत है और आदमी को बदलना चाहिए अपने को।
और कोई कहने की हिम्मत नहीं उठाता कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि दस हजार वर्षों में जो संस्कृति और धर्म आदमी को प्रेम से नहीं भर पाय, वह संस्कृति और धर्म गलत तो नहीं है।
और अगर दस हजार वर्षों में आदमी प्रेम से नहीं भर पाया तो आगे कोई संभावना है, इस । धर्म और इसी संस्कृति के आधार पर की आदमी कभी प्रेम से भी जाए?
दस हजार साल में जो नहीं हो पाय, वह आगे भी दस हजार वर्षों में होने वाला नहीं है। क्योंकि आदमी यही है, कल भी यही होगा आदमी हमेशा से यही है, और हमेशा यही होगा। और संस्कृति और धर्म जिनके हम नारे दिये चले जा रहे है, और संत और महात्मा जिनकी दुहाइयां दिये चले जा रहे है। सोचने के लिए भी तैयार नहीं है कि कहीं बुनियादी चिंतन की दिशा ही तो गलत नहीं है?
मैं कहना चाहता हूं कि वह गलत है। और गलत-सबूत है यह आदमी। और क्या सबूत होता | है गलत का?
| एक बीज को हम बोये और फल ज़हरीले और कड़वे हो तो क्या सिद्ध होता है? सिदध होता
है कि वह बीज जहरीला और कड़वा रहा होगा। हालांकि बीज में पता लगाना मुश्किल है कि | उससे जो फल पैदा होगें,वे कड़वे पैदा होंगे। बीज में कुछ खोजबीन नहीं की जा सकती। बीज | को तोड़-फोड़ो कोई पता नहीं चल सकता है कि इससे जो फल पैदा होते होंगे। वे कड़वे होंगे। | बीज को बोओ,सौ वर्ष लग जायेंगे-वृक्ष होगा, बड़ा होगा,आकाश में फैलेगा, तब फल आयेंगे ।
और तब पता चलेगा कि वे कड़वे है।
दस हजार वर्ष में संस्कृति और धर्म के जो बीज बोये गये है, वह आदमी उसका फल है। और | यह कड़वा है। और घृणा से भरा हुआ है। लेकिन उसी की दुहाई दिये चले जाते है हम और | सोचते है उसमें प्रेम हो जायगा। मैं आपसे कहना चाहता हूं,उससे प्रेम नहीं हो सकता है।
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