संस्कृत नाटकों में आर्षपात्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन | Sanskrit Natakon Mein Arshpatra : Ek Samikshatmk Adhyayan के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : संस्कृत नाटकों में आर्षपात्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shri Mati Anita Singh | Shri Mati Anita Singh की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Shri Mati Anita Singh | इस पुस्तक का कुल साइज 43.1 MB है | पुस्तक में कुल 456 पृष्ठ हैं |नीचे संस्कृत नाटकों में आर्षपात्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | संस्कृत नाटकों में आर्षपात्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन पुस्तक की श्रेणियां हैं : history
Name of the Book is : Sanskrit Natakon Mein Arshpatra : Ek Samikshatmk Adhyayan | This Book is written by Shri Mati Anita Singh | To Read and Download More Books written by Shri Mati Anita Singh in Hindi, Please Click : Shri Mati Anita Singh | The size of this book is 43.1 MB | This Book has 456 Pages | The Download link of the book "Sanskrit Natakon Mein Arshpatra : Ek Samikshatmk Adhyayan" is given above, you can downlaod Sanskrit Natakon Mein Arshpatra : Ek Samikshatmk Adhyayan from the above link for free | Sanskrit Natakon Mein Arshpatra : Ek Samikshatmk Adhyayan is posted under following categories history |
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भारतीय नाट्यशास्त्र के चिन्तन की अत्यन्त प्राचीन परम्परा और इसका वैभव विश्व-विश्रुत है। भारतीय नाट्य के चिन्तन का प्रमाण वेद, उपनिषद्, अष्टाध्यायी, रामायण और महाभारत के अनेक सन्दर्भो में देखा जा सकता हैं। इन्द्रिय सन्नकर्ष के आधार पर काव्य के दो भेदों - श्रव्य एवं दृश्य - में नाटक श्रेष्ठ हैं। श्रव्य काव्य विशेषतः श्रवणीय या पठनीय होता है। इसे पढ़ने या सुनने से इतनी तीव्र रसानुभूति नहीं हो सकती, जितनी नाटक देखने से। काव्यकारों को शब्द तथा भावों का विम्ब खड़ा करना पड़ता है।