श्री रामानुज भाष्य : श्री हरि किशन दास | Shri Ramanuj Bhashya : Shri Hari Krishan Dass

श्री रामानुज भाष्य : श्री हरि किशन दास | Shri Ramanuj Bhashya : Shri Hari Krishan Dass

श्री रामानुज भाष्य : श्री हरि किशन दास | Shri Ramanuj Bhashya : Shri Hari Krishan Dass के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : श्री रामानुज भाष्य है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shri Hari Krishan Dass | Shri Hari Krishan Dass की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 10.2 MB है | पुस्तक में कुल 648 पृष्ठ हैं |नीचे श्री रामानुज भाष्य का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | श्री रामानुज भाष्य पुस्तक की श्रेणियां हैं : gita-press

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पुस्तक का साइज : 10.2 MB
कुल पृष्ठ : 648

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अस्थमानेभ्यो भूतेभ्यो ग्रसितुत्वेन | अतः खाये जानेवाले भूतसे आम अन्तरभूतम् इति ज्ञातुं शक्यम् |है, ऐसा समझा जा सकता है।
उनका भक्षक होने के कारण गिन्न वस्तु प्रभविष्णु या प्रभवहेतुः च ।।
तपा प्रभविष्णु-पक्किा है भी
| है। अभिप्राय पह है कि ये हुए ग्रस्तांनाअन्नादीनाम् आकारान्तरेण
| अन्नादि पदापक, जो कि दूसरे परिणतानां प्रमबहेतुः तेभ्यः अर्या-आकारमें परिणत हो जाते हैं, उत्पन्न
करनेवाला भी यही है; इसलिये उनसे न्तरम् इति ज्ञातुं शक्यम् इत्यर्थः । |
| भिन्न वस्तु है, ऐसा समझा जा
सकता है। मृतशरीरे असनप्रभवादीनाम् मरे हुए शरीर में खाना और अदर्शनात् न भूतसंपातरूपं हो|उत्पन्न करना नहीं देखा जाता
| इसलिये यह निश्चय होता है कि भूतों असनग्रभवमरणहेतुः इति निश्चीयते |
| का समुदाय८प शरीर असन, प्रथि ॥ १६ ॥
1 और धारणा हेतु नहीं है ॥१६॥ ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते ।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हदि सर्बस्य विष्ठितम् ॥१७॥ यह ज्योतियोंका भी ज्योति और प्रकृतिसे पर कहा जाता है; ( ) ज्ञान, क्षेत्र और इनगम्य है तथा सबके हृदयमें स्थित है ।। १७ ।।
उप्रेतियां दीपादित्यमणिप्रभृती-| दीपक, सूर्य और मणि आदि नाम् अपि तद् एव ज्योतिः अका-पोतिया भी वही वयति है-यही शकम् दीपादित्यादीनाम् अपि
प्रयाश है, क्योंकि दीपक और सूर्य
|आदिका भी म-प्रभारूप इन ही आत्मप्रमार्पज्ञानम् एव प्रकाशकम्। प्रशाफ है। दीपक आदि तो दीपादमः तु विषयेन्द्रियसन्निकर्ष-1 विक्ष्य और इन्दियके संपगमें विन

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