सूर विनय पत्रिका : गीता प्रेस | Sur Vinay Patrika : Geeta Press के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : सूर विनय पत्रिका है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Geeta Press | Geeta Press की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Geeta Press | इस पुस्तक का कुल साइज 13.7 MB है | पुस्तक में कुल 324 पृष्ठ हैं |नीचे सूर विनय पत्रिका का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सूर विनय पत्रिका पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, Poetry
Name of the Book is : Sur Vinay Patrika | This Book is written by Geeta Press | To Read and Download More Books written by Geeta Press in Hindi, Please Click : Geeta Press | The size of this book is 13.7 MB | This Book has 324 Pages | The Download link of the book "Sur Vinay Patrika" is given above, you can downlaod Sur Vinay Patrika from the above link for free | Sur Vinay Patrika is posted under following categories dharm, hindu, Poetry |
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औरनि की जम के अनुसासन, किंकर कोटिक धावै। सुनि मेरी अपराध-अधमई, कोक निकट न आवैं ॥ हौं ऐसौ, तुम वैसे पावन गावत हैं जे तारे। अवगाह पूरन गुन स्वामी, सुर-से अधम उधारे ॥
हे हरिजी ! मेरे समान कोई पतित नहीं है। मन, वाणी और कर्मसे मैने जो पाप किये हैं, उनकी कोई गणना नहीं है। यमराजके द्वारपर बैई चित्रगुतजी मेरे समस्त पापको लिख रहे थे, किंतु उन्होंने भी मेरे अवगुण सुनकर त्राहि कर लिया ( हार मान ली ) और कागज रख दिया । यमराजकी आशा पाकर दूसरों ( पापी जीवों ) को लेने के लिये उनके करोड़ों सेवक दौड़ पड़ते हैं; किंतु मेरे अपराध और मेरी अधमताको सुनकर कोई मेरे पास भी नहीं आता । ( यमदूत भी मेरे स्पर्शसे अपवित्र हो जानेका भय मानते हैं । ) मैं तो ऐसा ( महान् पापी ) हैं और आप वैसे पतितपावन हैं। जिनका आपने उद्धार किया, वे आपका गुणगान करते हैं। सम्पूर्ण गुणकै कामी आपकी मैं शरण लेता हैं। जिन्होंने मुझ सूरदास-जैसे अधमका उद्धार श्रिया ।।