श्रीमत स्वामी निर्वेदानंद जी | Shreemat Swami Nirvedanand Ji

श्रीमत स्वामी निर्वेदानंद जी : एक पूर्ण सन्यासी | Shreemat Swami Nirvedanand Ji : Ek Purna Sanyasi

श्रीमत स्वामी निर्वेदानंद जी : एक पूर्ण सन्यासी | Shreemat Swami Nirvedanand Ji : Ek Purna Sanyasi के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : श्रीमत स्वामी निर्वेदानंद जी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 5.7 MB है | पुस्तक में कुल 70 पृष्ठ हैं |नीचे श्रीमत स्वामी निर्वेदानंद जी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | श्रीमत स्वामी निर्वेदानंद जी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography

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पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 5.7 MB
कुल पृष्ठ : 70

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रोचक ही नहीं अपितु आध्यात्मिक साधना के लिए अतिशय मार्गदर्शक भी हैं।
स्वामी शंकरानंदजी ने इस पुस्तक की भूमिका के रूप में तथा स्वामी ज्ञानानंद जी और श्री के.वी. जानकी रमणन ने अपने संस्मरणों के रूप में अपनी प्रभावशाली रचनाएं भेजकर हम लोगों का जौ उत्साहवर्धन किया, उसके लिए हम उनके कृतज्ञ हैं।
अंत में, हम इस पुस्तक के प्रकाशन में सहयोग करने वाले सभी सज्जनों म स्वामी जी के शुभाशीर्वाद का आवाहन करते हैं।
- भजन
के उपदेशों को पूर्ण रूप से आत्मसात कर जीवन में उनका मूर्तरूप होकर रहते थे। पवित्रता, अपरिग्रह, सरलता, तितिक्षा तथा परमेश्वर के प्रति सम्पूर्ण समर्पण आदि की व्याख्या को उनके जीवन द्वारा जैसे नव-जीवन प्राप्त हुआ। उनका जीवन हमारे पवित्र ग्रंथों में उद्घोषित उपदेशों और आश्वासनों का प्रत्यक्ष प्रमाण था। | इस प्रकार के व्यक्ति के जीवन पर पुस्तक लिखने में अपनी असमर्थता
। हम स्वीकार करते हैं। परन्तु हमारा मुख्य उद्देश्य स्वामीजी द्वारा लिखित विभिन्न रचनाओं का संकलन करना था जिनमें से अधिकांश विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। परन्तु जैसे-जैसे हम इस उदात्त कार्य में आगे बढ़ते गये, वैसे-वैसे स्वामीजी के जीवन से अधिकाधिक प्रेरणा पाकर उनके पत्र व्यवहार तथा अन्य स्रोतों से प्राप्त सामग्री के आधार पर उनके स्वयं प्रकाशित जीवन पर कुछ प्रकाश डालने का हमारा साहस बढ़ता गया। | बहुधा सन्तों के साथ हुए अपने अनुभव यधावत् वर्णन करने पर उन्हें उचित भाव से ग्रहण न किये जाने के कारण वे कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत होते हैं। फिर भी, स्वामीजी के जीवन का वर्णन करते समय किसी प्रकार की अतिशयोक्ति न हो इसका यथासम्भव प्रयास किया गया है।
स्वामीजी स्वभाव से ही कुछ कम बोलने वाले होने के कारण, उनके विचार तथा उपदेश उनके पत्र व्यवहार में कहीं अधिक प्रभावी ढंग से व्यक्त हुए हैं। ये पत्र स्वामीजी ने समय समय पर विभिन्न कार्यक्षेत्रों में रत अपने उन भक्तों को लिखे थे जिन्हें स्वामीजी ने सदैव अपना मित्र हीं माना। इन पत्रों को हमने संकलित कर इस पुस्तक में तिथि अनुसार सम्मिलित किया है। इन पत्रों के माध्यम से पाठकों की स्वामीजी से सीधे भेंट कराने का प्रयास किया गया है। स्वारीजी के अधिकतर पत्र मूल अंग्रेजी में ही लिखे हुए हैं, परन्तु उनके हिंदी में लिखे कुछ पन्न भी उपलब्ध हैं, जो इस पुस्तक के अं; स्रण सम्मिलित नहीं किये गये थे। इन्हें हिंदी संस्करण में सम्मिलित कर दिया गया है। ये सभी पत्र केवल
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