वराह पुराण : अज्ञात | Varah Puran : Unknown के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : वराह पुराण है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Unknown | इस पुस्तक का कुल साइज 23.7 MB है | पुस्तक में कुल 392 पृष्ठ हैं |नीचे वराह पुराण का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | वराह पुराण पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu
Name of the Book is : Varah Puran | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : Unknown | The size of this book is 23.7 MB | This Book has 392 Pages | The Download link of the book "Varah Puran" is given above, you can downlaod Varah Puran from the above link for free | Varah Puran is posted under following categories dharm, hindu |
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वेद । हो गये थे, उस समय आप मत्स्यरुप | रहनेवाले कितने राजा हो चुके हैं और उनसे पारण का समुद्रमें प्रविष्ट हो गये थे और वहाँसे | किन-किनको सिद्धि मुलभ हुई है? प्रभो! आप वेदोंका उद्धार करके अपने ब्रह्माको दे दिया था। मुझपर प्रसन्न हों और ये सब विषय संक्षेपसे मधुसूदन। इसके अतिरिक्त जब देवता और दानव बतानेको कृपा की। एकत्र होकर समुहका मन्थन करने लगे, तब पृथ्वीके ऐसा कहनेपर शूकररूपधारी भगवान्
आपने कपावतार ग्रहण करके मन्दराचल आदिवराह हँस पड़े। राते समय उनके उदरमें पर्वतको धारण किया था। भगवन्! आप सम्पूर्ण जगद्धात्री पृथ्वीको महर्षियोसहित रु, वम् सिद्ध जगत्के स्वामी हैं। जब मैं जलमें डूब रही थी, एवं देवताओंका समुदाय दीखने लगा। साथ ही तब आपने रसातलसे, जहाँ सब और जल-ही-उसने वहाँ अपने-अपने कर्तव्यपालनमें तत्पर जल था, अपनी एक दाढपर रखकर मेरा उद्धार | सूर्य, चन्द्रमा, ग्रहों और सातों लोकोको भी किया है। इसके अतिरिक्त जब वरदानके प्रभावसे देखा। यह सब देखते ही भय एवं विस्मयको हिरण्यकशिपुको असीम अभिमान हो गया था| पृथ्वौके सभी अङ्ग काँपने लगे। इस प्रकार
और वह पृथ्वीपर भाँति-भौतिके उपद्रव करने पृथ्वीको भयभीत देखकर भगवान् चराहने अपना लगा था, उस समय वह आपके द्वारा ही मारा मुख बंद कर लिया। तब पृथ्वीने उनको चतु: गया था। देवाधिदेव! प्राचीन कालमें आपने हौ | रूप धारणकर महासागरमें शेषनागकी शय्यापर जमदग्निनन्दन परशुरामके रूपमें अवतीर्ण होकर सोये देखा। उनकी नाभिसे कमल निकला हुआ मुझे क्षत्रियरहित कर दिया था। भगवन्! आपने | था। फिर तो चार भुजाओंसे सुशोभित उन
क्षत्रियकुलमें दाशरथि श्रीरामके रूप में अवतीर्ण | परमेश्वरको देखकर देवी पृथ्वीने हाथ जोड़ लिया होकर क्षत्रियोचित पराक्रमसे रावणको नष्ट कर | और उनकी स्तुति करने लगी। दिया था तथा वामनरूपसे आपने ही पृथ्वीने कहा-कमलनयन! आपके श्रीअङ्गमें चलिको चा था। प्रभो। मुझे जलसे ऊपर | पीताम्बर फहरा रहा है, आप स्मरण करते हो उठाकर आप टिकी रचना किस प्रकार करते हैं | भक्तोंके पापोंका हरण करनेवाले हैं, आपको तथा इसका क्या कारण है? आपकी इन लीलाओंके बारम्बार नमस्कार है। देवताओंके द्वेषी दैत्याका रहस्यको मैं कुल भी नहीं जानती। | दलन करनेवाले आप परमात्माको नमस्कार है।
विभो । मुझे एक बार जलके ऊपर स्थापित जो शेषनागकी शय्यापर शयन करते हैं, जिनके करनेके अननर आप किस प्रकार सृष्टिके पालनको वक्षःस्थलपर लक्ष्मी शोभा पाती है तथा भकॉको व्यवस्था करते हैं? आपके निरन्तर सुलभ रहनेका मुक्ति प्रदान करना ही जिनका स्वभाव है, ऐसे कौन-सा उपाय है? सृष्टिका किस प्रकार आरम्भ सम्पूर्ण देवताओंके ईश्वर आप प्रभुको बारम्बार और अपमान होता है? चारों युगोंको गणनाका नमस्कार है। प्रभो! आपके हाथमें पग चक्र और कौन हा प्रकार है तथा युगोंका क्रम किस प्रकार शाई धनुष शोभा पाते है आपपर जम एवं मृत्य चलता है? महेश्वर। उन युगोंमें किस युगको प्रभाव नहीं पड़ता तथा अपके नाभिकमलपर प्रधानता है तथा किस युगमें आप कौन-सौ ब्रह्मक प्रकटा हुआ है ऐसे आप के लिये लीला किया करते हैं? यज्ञमें सदा संलग्न बारम्बार नमस्कार है। जिनके अधर और कनकमत