वीर बुंदेले (भाग २) : प्रताप नारायण मिश्र | Veer Bundele (Part 2) : Pratap Narayan Mishra

वीर बुंदेले (भाग २) : प्रताप नारायण मिश्र  | Veer Bundele (Part 2) : Pratap Narayan Mishra

वीर बुंदेले (भाग २) : प्रताप नारायण मिश्र | Veer Bundele (Part 2) : Pratap Narayan Mishra के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : वीर बुंदेले (भाग २) है | इस पुस्तक के लेखक हैं : pratap narayan mishra | pratap narayan mishra की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 20.9 MB है | पुस्तक में कुल 111 पृष्ठ हैं |नीचे वीर बुंदेले (भाग २) का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | वीर बुंदेले (भाग २) पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, Stories, Novels & Plays

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पुस्तक का साइज : 20.9 MB
कुल पृष्ठ : 111

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जड़ से भी जो अच्छा मिले उसे प्रण करने में उससे संकोच न था। गुगग्राफी के साथ-साथ वे एक अच्छे योजक भी थे। शत्रु की सभी बातों के नाकारा समझ कर कूड़ेदान में फेंक देना, यह उनका स्वभाव न था।
शत्रु में भी कुछ अच्छे गुण होते हैं। .....नहीं तो ये मुट्ठी भर इतने छे देश को पराजित करने में समर्थ क्यौ हो गये? इमारी दुर्बलता के कारण हो तो..। राष्ट्र हित सर्वोपरि है। उसको अङ्ण झरने में कोई दोष नौं। यदि ऐसा नहीं था तो राम ने मरणासन्न रावण के पास लक्ष्मण ने राजनीति की शिक्षा लेने क्यों भेजा होता? अनुभब से सीखकर अपनी कमियों को दूर करने में की सफलता का इस्य छिपा हुआ है।
उन्झौने दो कार्य करने का निश्चय कर लिया था। पला तो मुगल फौज में घुस कर उनको निकट से देखने और समझने का।..... और दूसरा या शिवाजी से प्रत्यक्ष मिलने का। महाराष्ट्र और बुंदेलखंड की भौगोलिक स्थिति समान बी ड्रोन की देव पाट्ट और अंगों से के हुए थे। मैदान कंकरीले और पपीते थे। दोनों में निर्धनता भी समान थी।
शिवाजी ने मुगलों से कैसे सामना किया होगा? कैसे यशस्वी हुए होगे? उनके भी कार्य शैली में जानने और सीखने की उनकी इच्छा बलवती हो उठी। छत्रसाल को समाचार मिला कि राजा जयसिँङ की सेना दक्षिण में युद्ध अभियान पर जा रही है। दिलेर बाँ, दाऊद खाँ कुरेशी, इतिशाम वहाँ, शेखादा कुवादख मुल्ला याछिया, नबायत खाँ, जयसिंह सीसोदिया और सुजान सिंह बुंदेला आदि अनेक वे - रजवाड़े उसके साथ थे।
आमेर के राजा मिर्जा जयसिंह बड़े ही पराक्रमी और चतुर राजनीतिक थे। लेकिन ये मुगलों के गुलाम ! मानसिक दास ! जिन कुछ व्यक्तियों के बाहुबल और बुद्धि पर औरंगजेब का साम्राज्य टिका हुआ था उनमें से एक थे मिर्जा राजा जयसिंह ! मुगल बादशाह पहले सिरे का धूर्त और कुटिल था। अमर से दिखाने के काम में तो वह उपसिंह का बड़ा सम्मान करता, पर मन है मन उनसे बड़ा भय खाता। पदि किसी समय जयसिंह की ही बहूग उसके विरुद्ध उठ गई तो..... क्या होगा?
मुगल साम्राज्य को शिवाजी चुनौती देने लगे थे। महाराष्ट्र मैं उनकै अमितीय शक्ति उभर कर सामने आ गई थी। उन्नौने साम, दाम इण्ड, मेड़

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