बेताल पच्चीसी | Betal Pachchisi

बेताल पच्चीसी : सोमदेव भट्ट अनुवाद वेदप्रकाश सोनी | Betal Pachchisi : Somdev Bhatt Translation By Vedprakash Soni

बेताल पच्चीसी : सोमदेव भट्ट अनुवाद वेदप्रकाश सोनी | Betal Pachchisi : Somdev Bhatt Translation By Vedprakash Soni के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : बेताल पच्चीसी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Somdev bhatt | Somdev bhatt की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 12.5 MB है | पुस्तक में कुल 151 पृष्ठ हैं |नीचे बेताल पच्चीसी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | बेताल पच्चीसी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays, suggested

Name of the Book is : Betal Pachchisi | This Book is written by Somdev bhatt | To Read and Download More Books written by Somdev bhatt in Hindi, Please Click : | The size of this book is 12.5 MB | This Book has 151 Pages | The Download link of the book "Betal Pachchisi" is given above, you can downlaod Betal Pachchisi from the above link for free | Betal Pachchisi is posted under following categories Stories, Novels & Plays, suggested |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 12.5 MB
कुल पृष्ठ : 151

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प्राचीन काल की बात है, तब उज्जयनी (वर्तमान में उज्जैन) में महाराज विक्रमादित्य ज किया करते थे। विक्रमादित्य हर प्रकार से एक आदर्श राजा थे। उनकी दानशीलता की कहानियां आज भी देश के कोने-कोने में सुनी जाती हैं। राजा प्रतिदिन अपने दरबार में आकर प्रजा के दुखों को सुनते व उनका निवारण किया करते थे। एक दिन राणा के दरबार में एक भिक्षु आया और एक फल देकर चला गया। तब से वह भिक्षु प्रतिदिन राजदरबार में पहुंचने लगा। वह राजा को एक फल देता और रजा उसे कोषाध्यक्ष को सौंप देता। इस तरह इस वर्ष व्यतीत हो गए। हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षु राजा को फल देकर चला गया तो राजा ने उस दिन फल को कोषाध्यक्ष को न देकर एक पालतू बंदर के बच्चे को दे दिया जो महत के किसी सुरक्षाकर्मी का था और उससे छूटकर राजा के पास चला आया था। इस फल को खाने के लिए जब बंदर के बच्चे ने उसे बीच से तोड़ा तो उसके अंदर से एक बहुत ही उत्तम कोटि का बहुमूल्य रत्न निता । यह देखकर राजा ने यह इन ले लिया और कोषाध्यक्ष को बुलाकर उससे पूछा-''मैं रौन-रौन भिक्षु द्वारा लाया हुआ जो फल तुम्हें देता हूं, वे फल कहां हैं?" ।
राजा ने आज्ञा दी तो कोषाध्यक्ष रा-भंडार गया और कुछ ही देर बाद आकर राजा को बताया-"प्रभु, ३ फल तो सड़-गल गए, वे मुझे वहां नहीं दिखाई दिए। हां, चमकती-झिलमिलाती रनों की एक राशि वहां अवश्य मौजूद हैं।"
यह सुनकर रागा कोषाध्यक्ष पर प्रसन्न हुए और उसकी निष्ठा की प्रशंसा करते हुए सारे रत्न उसे ही सौंप दिए। अगले दिन पहले की तरह जब वह भिक्षु फिर राजदरबार में आया तो राजा ने उससे कहा-हे भिक्षु ! इतनी बहुमूल्य भेट तुम प्रतिदिन मुझे क्यों अर्पित करते हो ? अब मैं तब तक तुम्हारा यह फल ग्रहण नहीं करूंगा, जब तक तुम इसका कारण नहीं बताऔगे।" | राणा के कहने पर भिक्षु उन्हें अलग स्थान पर ले गया और उनसे कहा-"३ रणन, मुझे एक मंत्र की साधना करनी है, जिसमें किसी वीर पुरुष की सहायता अपेक्षित है। है वीरश्चैट ! उस कार्य में मैं आपकी सहायता की याचना करता हूं।"
यह सुनकर राजा ने उसकी सहायता करने का वचन दे दिया। तब संतुष्ट होकर भिक्षु ने गा से फिर कहा-'देव, तब मैं आगामी अमावस्या को यहां के महाश्मशान में, बरगद के पेड़ के नीचे आपकी प्रतीक्षा करूंगा। आप कृपया वहीं मेरे पास आ जाना।" "ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा।" राजा ने उसे आश्वस्त किया । तब वह भिक्षु संतुष्ट
बेताल पच्चीसी 17

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4 Comments
  1. BALAJI SIKSAN SANSTHAN says

    Very Good[Great] Collection. Please upload =Bedad i Ishq : Rudad i Shadi. Thank You.

  2. trinay says

    thank u Bhai Jo chahiye tha mil gaya

  3. ajay says

    superb collection

  4. poonam says

    download link “available nahi h”. Error 404 – esa kyu? book kese download karu?

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