अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ | Amar Vallari Or Anya Kahaniyan

अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ | Amar Vallari Or Anya Kahaniyan

अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ | Amar Vallari Or Anya Kahaniyan

अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ | Amar Vallari Or Anya Kahaniyan के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey' | Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey' की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 8.5 MB है | पुस्तक में कुल 141 पृष्ठ हैं |नीचे अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Amar Vallari Or Anya Kahaniyan | This Book is written by Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey' | To Read and Download More Books written by Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey' in Hindi, Please Click : | The size of this book is 8.5 MB | This Book has 141 Pages | The Download link of the book "Amar Vallari Or Anya Kahaniyan" is given above, you can downlaod Amar Vallari Or Anya Kahaniyan from the above link for free | Amar Vallari Or Anya Kahaniyan is posted under following categories Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 8.5 MB
कुल पृष्ठ : 141

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' मैं न जाने कब से यहीं खड़ा हूँ—अचल, निवकार, निरीह खड़ा हूँ । ‘न-जाने कितनी बार शिशिर ऋतु में मैने अपनी पर्णहीन अनाच्छादित शाखाओं से कुहरे की कठोरता को फोड़ कर अपने नियन्ता से मूक प्रार्थना की है; न जाने कितनी बार ग्रीष्म में मेरी जड़ों के सूख जाने से तृषित सहस्रों पत्र-रूप चक्षुओं से में आकाश की ओर देखा किया हैं; न-जाने कितनी बार हेमन्त । के आने पर शिशिर के भावी कष्टों की चिन्ता से मैं पीला पड़ गया हैं; न-जाने कितनी बार वसन्त, उस आह्लादक, उन्मादक वसन्त में, नीबू के परिमल से सुरभित समीर में मुझे रोमांच हुआ है और लोमवतु मेरे पत्तों ने कम्पित होकर स्फीत सरसर ध्वनि कर के अपना हर्ष प्रकट किया है ! इधर कुछ दिनों से मेरा शरीर क्षीण हो गया है, मेरी त्वचा में झुर्रियाँ पड़ गयो हैं, और शारीरिक अनुभूतियों के प्रति मैं उदासीन हो गया हूँ। मेरे पत्ते झड़ गये हैं, ग्रीष्म और शिशिर दोनों ही को मैं उपेक्षा की दृष्टि से देखता हूँ।

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