कटोरा भर खून : देवकीनंदन खत्री | Katora Bhar Khun : Devkinandan Khatri

कटोरा भर खून : देवकीनंदन खत्री  | Katora Bhar Khun : Devkinandan Khatri

कटोरा भर खून : देवकीनंदन खत्री | Katora Bhar Khun : Devkinandan Khatri के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : कटोरा भर खून है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Devkinandan Khatri | Devkinandan Khatri की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 10.7 MB है | पुस्तक में कुल 88 पृष्ठ हैं |नीचे कटोरा भर खून का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | कटोरा भर खून पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Katora Bhar Khun | This Book is written by Devkinandan Khatri | To Read and Download More Books written by Devkinandan Khatri in Hindi, Please Click : | The size of this book is 10.7 MB | This Book has 88 Pages | The Download link of the book "Katora Bhar Khun" is given above, you can downlaod Katora Bhar Khun from the above link for free | Katora Bhar Khun is posted under following categories Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 10.7 MB
कुल पृष्ठ : 88

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"वोम कहते हैं कि 'नेकी का बदला नेक और यदी का बदला बद से मिलता है मगर नहीं, देखो, आज मैं किसी नेक और पतिव्रता स्त्री के साथ बदी किया चाता हैं। अगर मैं अपना काम पूरा कर सका तो कल ही राजा का दीवान हो जाऊँगा। फिर कौन कह सकेगा कि बदी करने वाला सुख नहीं भोग सकता या अच्छे आदमियों को हल नहीं मिलता ? बस मुझे अपना कलेजा मजबूत कर रणना चाहिये, कहीं ऐसा न हो कि उसकी खूबसूरती और मीठी-मीठी बातें मेरी हिम्मत " (रुक कर) देखो, कोई आता है!"
रात जाधी से ज्यादे जा चुकी है। एक तो अंधेरी रात, दूसरे चारों तरफ से घिर आने वाली काली-काली घटा मानो पृथ्वी पर क्या रंग की चादर बिछा दी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। तेज हवा के झपेटों से कांपते हुए पत्तों की खड़खड़ाहट के सिवाय और किसी तरह की आवाज कानों में नहीं पड़ती।
एक बाग के अन्दर अंगूर की टट्टियों में अपने को छिपाये हुए एक आदमी ऊपर लिखी बातें धीरे-धीरे बुदबुदा रहा है। इस आदमी का रंग-रूप कैसा है, इसका कहना इस समय बहुत ही कठिन है क्योंकि एक तो उसे अंधेरी रात ने अच्छी तरह छिपा रखा है, दूसरे उसने अपने को काले कपड़ों से ढक लिया है, तीसरे अंगूर की धनी पत्तियों ने उनके साथ उसके ऐबों पर भी इस समय पर्दा डाल रक्खा है। जो हो, आगे चल कर तो इसकी अवस्था किसी तरह छिपी न रहेगी, मगर इस समय वो यह बान के बीचोंबीच वान्ने एक सब्ज़ बंगले की तरफ देख-देख तर दांत पीस रहा है। । यह मुख्तसर-सा बंगला सुन्दर लताओं से इंका हुआ है और इसके बीचोंबीच में जलने वाले एक मादान की रोशनी साफ दिखला रही है

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