सूर सागर | Soor Sagar के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : सूर सागर है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Jagannath Das | Jagannath Das की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Jagannath Das | इस पुस्तक का कुल साइज 101.0 MB है | पुस्तक में कुल 595 पृष्ठ हैं |नीचे सूर सागर का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सूर सागर पुस्तक की श्रेणियां हैं : Knowledge
Name of the Book is : Soor Sagar | This Book is written by Jagannath Das | To Read and Download More Books written by Jagannath Das in Hindi, Please Click : Jagannath Das | The size of this book is 101.0 MB | This Book has 595 Pages | The Download link of the book "Soor Sagar" is given above, you can downlaod Soor Sagar from the above link for free | Soor Sagar is posted under following categories Knowledge |
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जगत-पिता, जगदीस, जगत-गुरु, निज' भक्तनि की सहत ढिठाई भृगु कौ चरन राखि उर ऊपर, बोले बचन सकल-सुखदाई लिव-बिरंचि मारन की धाए, यह गति काहू देव न पाई विनु वदलै उपकार करत हैं, स्वारथ बिना करत मित्राई रावन अरि को अनुज बिभीषन, ताकीं मिले भरत की नाई। वकी कपट करि मारन आई, सो हरि जू बैकुंठ पठाई। विनु दीन्हें ही देत सूर-प्रभु', ऐसे हैं जदुनाथ गुसाई |