अध्यात्मदर्शन | Adhyatm Darshan

अध्यात्मदर्शन | Adhyatm Darshan

अध्यात्मदर्शन | Adhyatm Darshan के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अध्यात्मदर्शन है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Acharya Shri Nemichandra | Acharya Shri Nemichandra की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 22 MB है | पुस्तक में कुल 574 पृष्ठ हैं |नीचे अध्यात्मदर्शन का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अध्यात्मदर्शन पुस्तक की श्रेणियां हैं : Spirituality -Adhyatm

Name of the Book is : Adhyatm Darshan | This Book is written by Acharya Shri Nemichandra | To Read and Download More Books written by Acharya Shri Nemichandra in Hindi, Please Click : | The size of this book is 22 MB | This Book has 574 Pages | The Download link of the book " Adhyatm Darshan " is given above, you can downlaod Adhyatm Darshan from the above link for free | Adhyatm Darshan is posted under following categories Spirituality -Adhyatm |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 22 MB
कुल पृष्ठ : 574

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सौभाग्य से आपको योग्यतम गुरु मिल गएँ । स्थानकवासी समाज में आचार्य प्रवर श्रीहुकमीचन्दजी महाराज के षष्ठम पट्टधर युग-पुरुष, युग-द्रष्टा, क्रान्तिकारी विचारक, ज्योतिर्धर आचार्य श्रीजवाहरलालजी महाराज के सुयोग्य उत्तराधिकारी सरलस्वभावी, पण्डितप्रबर तत्कालीन युवाचार्य गणेशीलालजी महाराज के सान्निध्य में वि० सं० १९६६ माघ शुक्ला एकादशी , के दिन जावद शहर में बोराजी की बगीची में अपने भागवती जैनदीक्षा स्वीकार की। दीक्षा के १५ दिन पहले अजमेरनिवासी एक ज्योतिषी ने इस दिन दीक्षा का विघ्नकारक बताया था, परन्तु दीक्षार्थी मगनलालजी ने इसकी परवाह न करके उसी दिन दीक्षा ग्रहण की। चबूतरे के कठड़े पर लगी शिलाएँ’ टूट कर गिर पड़ीं, किन्तु शासनदेव की कृपा से किसी के जरा भीचोट न आई । यह अद्भुत चमत्कार था। आपने पूज्य गुरुदेव की सेवा में में रह कर आगमों का अध्ययन किया; और अहर्निश सन्तों की सेवा-शुश्रूषा में संलग्न रहे । अस्वस्थ साधु की परिचर्या करने का आपको अच्छा अनुभव है । आपको नाड़ी का ज्ञान बहुत अच्छा है। इसलिए रोगों का निदान करने और उसके अनुरूप आयुर्वेदिक औपध बताने में आप बहुत निपुण हैं । भीनासर (बीकानेर) में जब ज्योतिर्घर आचार्य प्रवर श्रीजवाहरलालजी महाराज अस्वस्थ ये, तब आपने अस्वस्थ-अबस्था से ले कर अन्तिम सांस तक बड़ी लगन, श्रद्धा एवं भक्ति से सेवा की। उनके अन्तिम समय से कुछ घंटे पहले उनकी वाणी वद हो गई थी, तब आप उन्हें दवा दे कर होश में लाए।

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