द्वापर का देवता : अरिष्टनेमि | Dwapar Ka Devta Arishtnemi के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : द्वापर का देवता : अरिष्टनेमि है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Mishrilal Jain | Mishrilal Jain की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Mishrilal Jain | इस पुस्तक का कुल साइज 1.6 MB है | पुस्तक में कुल 90 पृष्ठ हैं |नीचे द्वापर का देवता : अरिष्टनेमि का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | द्वापर का देवता : अरिष्टनेमि पुस्तक की श्रेणियां हैं : history
Name of the Book is : Dwapar Ka Devta Arishtnemi | This Book is written by Mishrilal Jain | To Read and Download More Books written by Mishrilal Jain in Hindi, Please Click : Mishrilal Jain | The size of this book is 1.6 MB | This Book has 90 Pages | The Download link of the book "Dwapar Ka Devta Arishtnemi" is given above, you can downlaod Dwapar Ka Devta Arishtnemi from the above link for free | Dwapar Ka Devta Arishtnemi is posted under following categories history |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
राजा हरि के महागिरि नामक पुत्र हुआ । महागिरिका हिमगिरि हिमगिरिको वसुगिरि वसुगिरिका गिरि हुआ इस प्रकार इस वंशमे अनेक राजा हुए फिर सुमित्र हुए सुमित्रके बीसवें तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ हुए मुनिसुव्रतनाथके सुवत सुवतके दक्ष दक्षके ऐलेय पुत्र हुआ । उसने इलावर्धन ताम्रलिप्ति माहिष्मती नामक नगर वसाये । ऐलेयके कुणिम पुत्र हुआ उसने कुण्डिन नगर वसाया इस प्रकार ‘हरिवंश' की परम्परा चलती गयी।