सूफीमत और हिंदी साहित्य | Sufimat Aur Hindi Sahitya

सूफीमत और हिंदी साहित्य : विमलकुमार जैन | Sufimat Aur Hindi Sahitya : Vimalkumar Jain

सूफीमत और हिंदी साहित्य : विमलकुमार जैन | Sufimat Aur Hindi Sahitya : Vimalkumar Jain के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : सूफीमत और हिंदी साहित्य है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Vimal Kumar Jain | Vimal Kumar Jain की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 22.2 MB है | पुस्तक में कुल 274 पृष्ठ हैं |नीचे सूफीमत और हिंदी साहित्य का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सूफीमत और हिंदी साहित्य पुस्तक की श्रेणियां हैं : education, history, india, Poetry

Name of the Book is : Sufimat Aur Hindi Sahitya | This Book is written by Vimal Kumar Jain | To Read and Download More Books written by Vimal Kumar Jain in Hindi, Please Click : | The size of this book is 22.2 MB | This Book has 274 Pages | The Download link of the book "Sufimat Aur Hindi Sahitya" is given above, you can downlaod Sufimat Aur Hindi Sahitya from the above link for free | Sufimat Aur Hindi Sahitya is posted under following categories education, history, india, Poetry |


पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 22.2 MB
कुल पृष्ठ : 274

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सूफीमत का आविर्भाव मान्य नहीं है । यद्यपि मृफीमत में शरीअत की मर्यादा का उच्चन कर स्वतन्त्र विचार में प्रमुख कार्य किया जिसके लिए हल्लाज आदि को मुली का मुख जमना पड़ा तथापि अनेक बातें अनेक सूफियो द्वारा शरीअत के अनुसार ही ब्रहण की गई ।
हम सम्पूर्ण प्रतिवाद से हमारा तात्पर्य केवल इतना ही है कि सूफीमत के आविर्भाव में हम किसी एक भावना को कारण नहीं मान सकते । शुटीं" के कामनामुसार हुम मुस्लिम तत्त्वज्ञान को पू और पश्चिमी विचारों का सम्मिश्रण मानते है, जिसमें मुस्लिम सिद्धान्तों का प्राधान्य है। सूफौंमत भी इस्लाम का एक धार्मिक तत्त्वज्ञान हो हैं।
मुकीमत की बढ़ती हुई इस भावना पर हम प्रधाननः पांचों मतों का प्रभाव मानते हैं, ईमाईंमत, नव अफलातूनीमत, नास्टिकमत, बुद्धमत और अद्वैतमत । निकल्सन ने अद्वैतवाद को नहीं माना है । इन प्रभावों के अतिरिक्त एक विशेष प्रभाव जो हमारे मन में सूझीमत पर पड़ा हुआ जान पड़ता है वह हैं। इस्लाम के पूर्वकाल में अध्यात्मवाद का प्रचार जो अरब देश में बाहर से आकर वर्ग विशेष में प्रचलित हुमा भा। कुरान में 'समाबी' का उल्लेख मिलता है, जो एकेश्वरवाद को मानने वाले थे और जीवन में पवित्रता पर अधिक बल देते थे । ये लोग आर्य वंश के बतलाये जाते है, जो प्राचीन ईरान तथा भारतवर्ष में मन्द (मीङियन) जाति के नाम से प्रसिद्ध थे । इन लोगो के वंशधर अब तक अपने धर्म को पालन करते हुए अरब के आसपास के प्रदेशों में पाये जाते हैं। ईसाई प्रभाव को हमने मूक्ष्मतः दिग्यप्ति कर दिया है । न्यो प्लेटोनिश्म (नव अफलातूनीमत का व्याख्याता प्लोटीनस २०५ ६० में उत्पन्न हुषा बा । छठवीं शताब्दी में बह मत अतन्त्र सत्ता में न रहा' वरन् शीघ्र ही ईसाई व मुस्लिम रहस्यवाद के रूप में कुछ परिबर्तत होकर पुन, प्रकट हुआ । नास्टिक मत का प्रवर्तक साइमन था । नास्टिक की जीर्णावस्था में मानों ने उसी के ध्यसाबपोष पर एक भूतन भवन सा किया था। अनैतमत और बुद्ध मत का निर्वाण सिद्धान्त भारतीय मत थे जो अब याजीद (वायजीद) के समय में अंशत. फारस में व्याख्यात हुए थे। इन मतो के किन सिद्धान्तों ने सूफीमत के विकास में सहयोग विगा इसका बिबेचन म अग्रिम पर्व में करेंगे।

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2 Comments
  1. drhusainkhan says

    सूफीमतसाहित्यउपलब्धकरवाने हेतुआभार
    डॉ हुसैनखाॅ
    [email protected]

    1. Jatin says

      you can send us mail [email protected]

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