ग्राम देवता | Gram Devta के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : ग्राम देवता है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ramdev Shukla | Ramdev Shukla की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Ramdev Shukla | इस पुस्तक का कुल साइज 4.3 MB है | पुस्तक में कुल 124 पृष्ठ हैं |नीचे ग्राम देवता का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | ग्राम देवता पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, Spirituality -Adhyatm
Name of the Book is : Gram Devta | This Book is written by Ramdev Shukla | To Read and Download More Books written by Ramdev Shukla in Hindi, Please Click : Ramdev Shukla | The size of this book is 4.3 MB | This Book has 124 Pages | The Download link of the book "Gram Devta " is given above, you can downlaod Gram Devta from the above link for free | Gram Devta is posted under following categories dharm, Spirituality -Adhyatm |
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गिरगिटया फिर अट्टहास करता है, और जुटायें पंचाएत । अब दें टांड़ नहीं तो बेदखल बैल रो।' घोड़ी दूर जाकर कहता है, 'अरे कासी भाई! ई बाभन मण्डली है, जियो तो खायेगी ? मरने पर भी खायेगी। भागो।' और जोर से हँसता हुआ चला जाता है। यह गिरगिटवा भी अजय है । चालीस से उमर कम है मगर दाढ़ी मूंछ जटा बढ़ाकर घूमता है। मेहरी चमरटोली में सबने सुन्दरी थी। पड़ोसी गांव के बाबा जी के यहाँ रोज जाती धी सोहनी और रोपनी में । बाद में बाबा जी भी आने लगे। एका दिन गिरगिटया ने बाबाजी से कहा, 'महाराज, चमार का दान लेंगे?' बायाजी कुछ नहीं बोले, फिर हंसने लगे, 'हाँ हाँ, गिरगिट भगत, काहे नहीं लेंगे। दो, पया दे रहे हो ?' गिरगिट घर में गया और मेहरिया की यांह पकड़े बाहर आ गया, बोला, 'महाराज और कुछ तो है नहीं अपके जोग, रहे है । आपणे गोबर पानी करेगी। हम अब साधू हो गये' सारा गांव देखता रह गया। गिरगिटया गांव छोड़फर न जाने कहाँ चला गया। .