चौदहवीं का चाँद : पंडित चमूपतिजी | Chaudahavi Ka Chand : Pt. Chamupatijee के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : चौदहवीं का चाँद है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Pandit Chamupati | Pandit Chamupati की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Pandit Chamupati | इस पुस्तक का कुल साइज 500 KB है | पुस्तक में कुल 136 पृष्ठ हैं |नीचे चौदहवीं का चाँद का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | चौदहवीं का चाँद पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, islam
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चौदहवीं का चाँद अरबी, फ़ारसी के उद्धट विद्वान् च महान् लेखक थे। इस्लामी साहित्य पर उन्हें अधिकार प्राप्त था। मियाँ अब्दुल्ला और दूसरे मुस्लमानों से जब मुन्शीजी की पुस्तकों का कोई उत्तर न बन पड़ा तो खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे के अनुसार मुन्शी इन्द्रमणि के विरुद्ध न्यायालय का द्वार खटखटाया। वाद प्रस्तुत किया गया। निचले न्यायालय में विरोधी अपनी बुद्धि चातुर्य से विजय प्राप्त कर प्रसन्न हो गए। महर्षि दयानन्द्र ने मुन्शीजी की सहायता के लिए सार्वजनिक अपील करके वाद उच्च न्यायालय में प्रस्तुत करा दिया। जहाँ से मुन्शीजी सभी आक्षेपों से मुक्त हो गए। अर्थ दण्ड से भी मुक्ति मिली और मुन्शीजी की पुस्तकों की जब्ती का आदेश भी चापिस ले लिया गया। मुन्शीजी की मृत्यु के पश्चात् उनकी पुस्तकें अनुपलब्ध हो गयीं, परन्तु वे अपना उद्देश्य पूरा कर गयीं। हिन्दुओं को जीवित व विरोधियों को सावधान कर गयीं, अर्थात् उन्हें पता लग गया कि वे कितने पानी में हैं?
इसके कुछ समय पश्चात् मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी ने हिन्दू धर्म पर और विशेषतया आर्यसमाज पर नये सिरे से आक्रमण प्रारम्भ कर दिए। कादियानी साहब का उपयुक्त उत्तर पं० लेखरामजी,
आर्य मुसाफ़िर ने दिया और ऐसा दिया कि कोई और क्या देगा? मिर्जा साहब से जब कोई उत्तर न बन पड़ा तो पं० लेखरामजी की हत्या की भविष्यवाणी की गई और निःसन्देह उन्हें इसमें सफलता प्राप्त हुई,