सदाचार अंक : गीता प्रेस | Sadachar Ank : Geeta Press के बारे में अधिक जानकारी :
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वेदादि शास्त्रों में दो प्रकारके धमका उपदेश किया कर अगले दिन कर्तव्योक लिये भी तैयारी करनी गया है । उनमे एक हैं--प्रवृत्तिधर्म और दूसरा है निवृत्ति- चाहिये । शामको संध्या-जप, औपासन अथवा अग्निहोत्र, धर्म । निवृत्तिधर्म ज्ञानमार्गके लिये कहा गया है। शिवजी मन्दिरमें जाकर शिवजीका दर्शन, रानको गिन प्रवृत्तिधर्म तो जीवन और संसारकी बातों विषयों कहा भोजन, भगवञ्चिन्तन अथवा शुभविवार के साये लेटर गया है। जो संसारगे हैं, उनको ठीक तौरपर हरेक सोना आदि कार्य ही मानब दिये दिन पर्नयाकी काम वरने तरीके प्रवृत्तिधर्म बताता है । सवेरे साढे तरह वरनेके कर्तव्य धर्मशाग्र कहे गये हैं। इन गापाको चार वजेके बाद बाहामुहुर्तमें उठकर दोनों हाथोको करनेके लिये अधिक-से-अधिक तपता की आवश्यकता आँखोंसे लगाकर हाथोको देखना चाहिये । वैसे देखते हैं । यही सदाचारको मागप्राप्त-परम्परा भी है। समय दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वतीदेवीजीका ध्यान करना आधार दो प्रकारका होता है । एक ब्राहा और चाहिये । बादको च-कार्यके लिये अर्थात् मल-मूत्र- दुसरा आन्तर । बा आचारले अन्तर्गत दांत साफ करना, विसर्जनके लिये जाना चाहिये । उसके बाद दाँत साफ स्नान करना, साफ कपड़े पहनना : ६ । आन्तर करके स्नान करना चाहिये । बादको कपड़े पहनकर
आचारमें किसीको नुकसान पहुँचानेका ध्यान न रन्बना, भाळमें विभूति या चन्दनतिलक धारण करना चाहिये।
किसीको कष्ट न पहुँचाना, सत्य बोलना, हृदयमें श्रीगवान्उसके बाद संध्या-जप, औपासन होम, अग्निहोत्र,
का सदा ध्यान करना, खुशीके साथ रहना, सबके साथ
सद्व्यवहार करना आदि आते हैं । इस तरहके बाद्य और पूजा-पाठ, विष्णुमन्दिरमें जाकर दर्शन करना आदि
अन्तराचार शुद्धिके साथ नित्य कामों को अच्छी तरह करना कार्य करने चाहिये । हमारे घरपर जो अतिथि चाहिये । यही मानवको मानसिक शुद्धताके साथ चित्त
आते हैं,उनको भोजन करानेके बाद स्वयं भोजन करना, शुद्धि उत्पन्न कर आमज्ञानकी प्राप्ति कराता है ।
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