विवेक चूडामणि | Vivek Chudamani

विवेक चूडामणि : मुनिलाल गुप्ता | Vivek Chudamani : Munilal Gupta

विवेक चूडामणि : मुनिलाल गुप्ता | Vivek Chudamani : Munilal Gupta के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : विवेक चूडामणि है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shankaracharya | Shankaracharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 8.9 MB है | पुस्तक में कुल 153 पृष्ठ हैं |नीचे विवेक चूडामणि का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | विवेक चूडामणि पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, gita-press, hindu, inspirational

Name of the Book is : Vivek Chudamani | This Book is written by Shankaracharya | To Read and Download More Books written by Shankaracharya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 8.9 MB | This Book has 153 Pages | The Download link of the book "Vivek Chudamani" is given above, you can downlaod Vivek Chudamani from the above link for free | Vivek Chudamani is posted under following categories dharm, gita-press, hindu, inspirational |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : , , ,
पुस्तक का साइज : 8.9 MB
कुल पृष्ठ : 153

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

॥ श्रीहरिः ।।
विवेक-चूडामणि
नन्दितानि दिगन्तानि यस्यानन्दाम्बुविन्दुना। पूर्णानन्दं प्रभुं वन्दे स्वानन्दैकस्वरूपिणम् ॥
| मंगलाचरण सर्ववेदान्तसिद्धान्तगोचर तमगोचरम्। गोविन्दं परमानन्दं सद्गुरुं प्रणतोऽस्म्यहम्॥ १॥ | जो अज्ञेय होकर भी सम्पूर्ण वेदान्तके सिद्धान्त वाक्यसे जाने जाते हैं, उन परमानन्दस्वरूप सद्गुरुदेव श्रीगोविन्दको मैं प्रणाम करता हूँ।
ब्रह्मनिष्ठाका महत्त्व जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंस्त्वं ततो विप्रता तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम्। आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थितिमुक्तिनँ शतकोटिजन्मसु कृतैः पुण्यैर्विना लभ्यते ॥२॥
जीवको प्रथम तो नरजन्म ही दुर्लभ है, उससे भी पुरुषत्व और उससे भी ब्राह्मणत्वका मिलना कठिन हैं; ब्राह्मण होनेसे भी वैदिक धर्मका अनुगामी होना और उससे भी विद्वताका होना कठिन है। [यह सब कुछ होनेपर भी] आत्मा और अनात्माको विवेक, सम्यक् अनुभव, ब्रह्मात्मभावसे स्थिति और मुक्ति-ये तो करोड़ों जन्मों में किये हुए शुभ कर्मोके परिपाकके बिना प्राप्त हो ही नहीं सकते।।
त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम्।। मनुष्यत्वं । मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः ॥ ३॥
दुर्लभं

You might also like
3 Comments
  1. Vasant says

    बहुत बहुत धन्यवाद आपकेेे श्री चरणों मे मेरा प्यार भरा प्रणाम

  2. Harish Mali says

    योगवासिष्ठ PDF भी उपलब्ध कराये

Leave A Reply

Your email address will not be published.