अपरोक्षानुभूति | Aparokshanubhuti

अपरोक्षानुभूति : शंकराचार्य | Aparokshanubhuti : Shankaracharya

अपरोक्षानुभूति : शंकराचार्य | Aparokshanubhuti : Shankaracharya के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अपरोक्षानुभूति है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shankaracharya | Shankaracharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 3.2 MB है | पुस्तक में कुल 102 पृष्ठ हैं |नीचे अपरोक्षानुभूति का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अपरोक्षानुभूति पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

Name of the Book is : Aparokshanubhuti | This Book is written by Shankaracharya | To Read and Download More Books written by Shankaracharya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 3.2 MB | This Book has 102 Pages | The Download link of the book "Aparokshanubhuti" is given above, you can downlaod Aparokshanubhuti from the above link for free | Aparokshanubhuti is posted under following categories dharm, hindu |


पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 3.2 MB
कुल पृष्ठ : 102

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भूमिका.
प्रगट होकि कलिकालमें पुरुष अनेक दुःखसे दुःखित रहते हैं और सबही चाहतेहैं कि हमारा दुःख दूर हो जाय इस विपयमें विचार यह है कि संसारके दुःख यद्यपि क्षण घडी महीना वर्ष इत्यादि नियमित कालकी औपध मंत्रादिकसेभी दूर होस केहैं परन्तु अत्यन्त नाशको प्राप्त नहीं होते कि जिससे दुःखसागरसे पीछा छूटे क्योंकि मुक्तितौ ब्रह्मज्ञानके विना कदापि नहीं होसकी जैसा कि यजुर्वेदकी श्रुतिका अभिप्राय है, "तमेव विदित्वातिमृत्युमेतिनान्यःपन्थाविद्यतेऽयनाय” उसत्रस्वकाही साक्षात्कार कर मुक्तिको प्राप्तहोताहै अन्य कोई उपाय मुक्तिके प्राप्त होनेका नहीं है, इसप्रकार संसारको केशित देखके "परिव्राजकाचार्घ्य श्रीमच्छंकराचार्य्यजी’ अपरोक्षानुभूतिको रचतेभए जिसमें संक्षेपसे वेदान्त प्रक्रिया सरलरीतिसे वर्णन करीहै और इसकी संस्कृतटीकाभीहुई परन्तु ऐसे पुरुप चहुत कम होतेहैं जोकि मूल अथवा संस्कृतटीकाको समझ सकें। और जो समझसकैहैं इनकोतौ संस्कृतटीकाका भी कोई कामनहीहै केवल संस्कृतका किञ्चिन्मात्रज्ञान रखनेवाले सत्पुरुपोंके अर्थ इस पुस्तककी स्वरूपप्रकाशको नामवाली भापाटीका अति स्पष्ट बनाईहै इस मेरे श्रमको देख सज्जनपुरुपको अवश्य आह्लाद होगा । श्रीयुत भोलानाथात्मज पण्डित रामस्वरूप द्विवेदी.

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1 Comment
  1. Purushottam Shrivastava says

    अति उत्तम अनिरवचनीय शंकराचार्य भगवान जी का प्रसादिक शास्त्र जिसमें अद्वैतवाद सिद्धांत को बडे तार्किक एवं मार्मिक तरह से समझाया गया है।

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