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चिंताओं से छुटकारे का मार्ग : पं. श्रीराम शर्मा आचार्य | Chintaon Se Chhutkare Ka Marg : Pt. Shreeram Sharma Acharya

चिंताओं से छुटकारे का मार्ग : पं. श्रीराम शर्मा आचार्य | Chintaon Se Chhutkare Ka Marg :  Pt. Shreeram Sharma Acharya

चिंताओं से छुटकारे का मार्ग : पं. श्रीराम शर्मा आचार्य | Chintaon Se Chhutkare Ka Marg : Pt. Shreeram Sharma Acharya के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : चिंताओं से छुटकारे का मार्ग है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Pt. Shreeram Sharma Acharya | Pt. Shreeram Sharma Acharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 2.3 MB है | पुस्तक में कुल 57 पृष्ठ हैं |नीचे चिंताओं से छुटकारे का मार्ग का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | चिंताओं से छुटकारे का मार्ग पुस्तक की श्रेणियां हैं : inspirational, Knowledge

Name of the Book is : Chintaon Se Chhutkare Ka Marg | This Book is written by Pt. Shreeram Sharma Acharya | To Read and Download More Books written by Pt. Shreeram Sharma Acharya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 2.3 MB | This Book has 57 Pages | The Download link of the book "Chintaon Se Chhutkare Ka Marg" is given above, you can downlaod Chintaon Se Chhutkare Ka Marg from the above link for free | Chintaon Se Chhutkare Ka Marg is posted under following categories inspirational, Knowledge |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 2.3 MB
कुल पृष्ठ : 57

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आजकल पागलखानों तथा शफाखानों में मानसिक रोगों के जितने बीमार आते हैं, उनमें से अधिकांश ऐसे होते हैं, जो चिंता मार के कारण मन को संतुलित नहीं रख सके हैं। उनके मस्तिष्क में बीते हुए जीवन के दियदाविक हाहाकार, कल्पना गौन रुदन है। प्रिय व्यक्ति के हि की आता पी। और दुस5 वेदना है। हजारों रुपयों की हानि की कसक है। समाज में दूसरों द्वारा की हुई मानहानि को जलन है, समाज, अफसर दियाँ तथा पुलिस द्वारा किये गये अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह है। कोई मिटते-कुटते ऐसे जद निराशावादी हो गये हैं कि उनका जैसे आनंद का व्रत ही सूा गया है। इन्हीं अनुभवों के बल पर वे भविष्य में भय से उत्पन्न दुष्प्रवृत्तियों के शिकार हैं। अपनी प्रतिकूलता के दूषित विचार उनके अंतकरण की उत्तम योजनाओं को क्षण भर में धूल में मिला देते हैं। मनुष्य की मानसिक शक्तियों का भय र चिंता में फंसाने वाला भय महाराक्षस है। मय की प्रथम संतान चिंता है। इन स्मृतियों तथा भावी दुस्वप्न का द्वंद्व मानसिक रोगों के रूप में प्रकट होता है। अव्यक्त आशंकाएँ, दुश्चिताएँ. कुत्पनाएँ संस्काराधीन होती हैं। वे रोग के रूप में उदत होकर विसी प्रकार अपनी परितृप्ति चाहती हैं। _ संसार में दुख, चिंता, व्यग्रता का अरण यह है कि हम चिंता को "ज" अर्थात् वर्तमान को अच्छी तरह व्यतीत करने में न लगाकर निरतर स्मृति और आशा के पल में झुलते रहते हैं। भविष्य के लिए व्यर्थ की हैरानी, दुःख-क्लेश, बीती हुई बातों के लिए, शोक न होने वाली घटनाओं के लिए मोड में फंसे रहते हैं।
| राबर्ट लुई स्टीवेन्सन ने एक स्थान पर लिखा है, चाहे किसी का मोझ कितना ही भारी क्यों न हो. प्रत्येक व्यक्ति अपना बोझ सांयकाल तक हो सकता है। हममें से हर एक व्यक्ति शाम तक अपना कठिन से कठिन कार्य कर सकता है, सिर्फ एक दिन

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