कौटिलीय अर्थशास्त्र : पंडित उदयवीर शास्त्री हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Kautileey Arthshstra : Pt.Udaybeer Shastri Hindi Book Free Pdf Download

कौटिलीय अर्थशास्त्र : पंडित उदयवीर शास्त्री | Kautileey Arthshstra : Pt. Udaybeer Shastri

कौटिलीय अर्थशास्त्र : पंडित उदयवीर शास्त्री | Kautileey Arthshstra : Pt. Udaybeer Shastri

कौटिलीय अर्थशास्त्र : पंडित उदयवीर शास्त्री | Kautileey Arthshstra : Pt. Udaybeer Shastri के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : कौटिलीय अर्थशास्त्र है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Udayveer Shastri | Udayveer Shastri की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 47.5 MB है | पुस्तक में कुल 1019 पृष्ठ हैं |नीचे कौटिलीय अर्थशास्त्र का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | कौटिलीय अर्थशास्त्र पुस्तक की श्रेणियां हैं : education, history, Knowledge

Name of the Book is : Kautileey Arthshstra | This Book is written by Udayveer Shastri | To Read and Download More Books written by Udayveer Shastri in Hindi, Please Click : | The size of this book is 47.5 MB | This Book has 1019 Pages | The Download link of the book "Kautileey Arthshstra" is given above, you can downlaod Kautileey Arthshstra from the above link for free | Kautileey Arthshstra is posted under following categories education, history, Knowledge |

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पुस्तक का साइज : 47.5 MB
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कौटलीय अर्थशास्त्र [१ अधि० सहायसाध्य राजत्वं चक्रमेकं न चढते ।। कुवत सचिस्तस्मातेषां च शृणुयान्मतम् ।। १५ ।। इति विनाधिकरिके प्रथमे ऽधिकरणे इन्द्रियायै शरीवृतं
नक्षमा प्रायः ॥ ५ ॥ इन्द्रियज्ञयः समाप्तः । जिप प्रकार गाडीक ए पइया दूपरेकी सहायताके बिना अदुपयुक होता है, इस प्रकार राज चक्र भी अमात्य आदि की सहायताके बिना एकाकी राजाके द्वारा नहीं उठा सके । इसलिये राजाको उचित है कि यह योग्य अमात्यको रक्खे, और उनके मतको बराबर सुने ॥ १५ ॥
विनयाधिकारिक प्रथम अचिकरणमें सातवां अध्याय समाप्त ।
आठवां अध्याय ।
५ अकरा ।।
अमात्यकी नियुक्ति । सहापायिन इमायान्कृत दृष्टशौचसापत्यादिति भारद्वाजः ।। १ ।। ते यस्य विश्वास्या भवन्तीति ।। २ ।।
| भारद्वाज आचाका मत है कि राजा अपने सहाध्यायोंमेंसे कि को अमात्य नियुक्त कर । * कि इनके हृदय की पवित्रता और कार्य करने की शाक्त, साथ पढ़ने के समय में अरू तह अशी जाती है ॥ 1 ॥ और हम हिपे वे मन्त्री इस राजाळे विश्वासपात्र भी होते हैं ॥ ३ ॥
नेति विशालाक्षः ।।३।। सहकाढितत्वात्परिभवन्त्येनम् ।।४।। ये ह स गुह्यसपणिस्तानमायान्कुवत समानशैलमसरवाना ॥ ५॥ ते ह्यस्य मर्मज्ञत्वभयान्नापराध्यन्तीति ।। ६ ।।
विशालाक्ष एस मत को ठीक नहीं मानतः ३॥ व कला है कि, अधम मन काछमें साथ २ सेजनके कारण वे कम राजाका तिरस्कार कर सकते हैं ।। ४ ।। इम पे । सँग, के छिी हुY अभाण के समान है। अषण नेवासे ४, शको, स्वभाव पसनके समान होने के कारण, अमात्य बनाना चाहिये ॥ ५ ॥ क्योंकि वे लंग, इस भप कि राजा हमारे सत्र ममेको मानता है, कभी रक्षिाका अपराध में करेंगे ॥१॥

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