नारद महापुराण : अज्ञात | Naarad Mahapuraan : Unknown के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : नारद महापुराण है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Unknown | इस पुस्तक का कुल साइज 41.5 MB है | पुस्तक में कुल 750 पृष्ठ हैं |नीचे नारद महापुराण का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | नारद महापुराण पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, Uncategorized
Name of the Book is : Naarad Mahapuraan | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : Unknown | The size of this book is 41.5 MB | This Book has 750 Pages | The Download link of the book "Naarad Mahapuraan" is given above, you can downlaod Naarad Mahapuraan from the above link for free | Naarad Mahapuraan is posted under following categories dharm, hindu, Uncategorized |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
संक्षिप्त नारदपुराण सदा परब्रह्म परमात्माका जप एवं कीर्तन करते थे।| स्वभावके हैं और पुराणसंहिताके वक्ता हैं। भगवान् सूर्यके समान प्रतापी, धर्मशास्त्रोंका यथार्थ तत्त्व मधुसूदन प्रत्येक युगमें धर्मोका ह्रास देखकर जाननेवाले वे महात्मा नैमिषारण्यमें तप करते थे। वेदव्यास-रूपसे प्रकट होते और एक ही वेदके उनमेंसे कुछ लोग यज्ञोंद्वारा यज्ञपति भगवान् विष्णुका अनेक विभाग करते हैं। विप्रगण! हमने सब यजन करते थे। कुछ लोग ज्ञानयोगके साधनोंद्वारा शास्त्रोंमें यह सुना है कि वेदव्यास मुनि साक्षात् ज्ञानस्वरूप श्रीहरिकी उपासना करते थे और कुछ भगवान् नारायण ही हैं। उन्हीं भगवान् व्यासने लोग भक्तिके मार्गपर चलते हुए परा- भक्तिके द्वारा सूतजीको पुराणोंका उपदेश दिया है। परम बुद्धिमान् । भगवान् नारायणको पूजा करते थे।
वेदव्यासजीके द्वारा भलीभाँति उपदेश पाकर सूतजी एक समय धर्म, अर्थ, काम और मोक्षका सब धर्मोके ज्ञाता हो गये हैं। संसारमें उनसे उपाय जाननेकी इच्छासे उन श्रेष्ठ महात्माओंने | बढ़कर दुसरा कोई पुराणोंका ज्ञाता नहीं है; एक बड़ी भारी सभा की। उसमें छब्बीस हजार | क्योंकि इस लोकमें सूतजी ही पुराणोंके तात्त्विक ऊर्ध्वरेता (नैष्ठिक ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले) | अर्थको जाननेवाले, सर्व और बुद्धिमान् हैं। मुनि सम्मिलित हुए थे। उनके शिष्य-प्रशिष्योंकी | उनका स्वभाव शान्त है। ये मोक्षधमके ज्ञाता तो हैं। संख्या तो बतायी ही नहीं जा सकती। पवित्र | हो, कर्म और भक्तिके विविध साधनोंको भी जानते अन्तःकरणवाले वे महातेजस्वी महर्षि लोकोंपर | हैं। मुनीश्वरो! वेद, वेदाङ्ग और शास्त्रों का जो अनुग्रह करनेके लिये ही एकत्र हुए थे। उनमें राग | सारभूत तत्त्व है, वह सब मुनिवर व्यासने जगत्के और मात्सर्यको सर्वथा अभाव था। वे शौनकजीसे | हितके लिये पुराणों में बता दिया है और ज्ञानसागर यह पूछना चाहते थे कि इस पृथ्वीपर कौन | सूतजी उन सबका यथार्थ तत्त्व जाननेमें कुशल हैं, कौन-से पुण्यक्षेत्र एवं पवित्र तीर्थ हैं। त्रिविध | इसलिये हमलोग उन्हींसे सब बातें पूछे। तापसे पीड़ित चित्तवाले मनुष्योंको मुक्ति कैसे | इस प्रकार शौनकजीने मुनियोंसे जब अपना प्राप्त हो सकती है। लोगों को भगवान् विष्णुको | अभिप्राय निवेदन किया, तब वे सब महर्षि अविचल भक्ति कैसे प्राप्त होगी तथा सात्त्विक, विद्वानोंमें श्रेष्ठ शौनकजीको आलिङ्गन करके बहुत राजस और तामस-भेदसे तीन प्रकारकै कर्मोका | प्रसन्न हुए और उन्हें साधुवाद देने लगे। तदनन्तर फल किसके द्वारा प्राप्त होता है। उन मुनियोंको | सब मुनि वनके भीतर पवित्र सिद्धाश्रमतीर्थमें अपनेसे इस प्रकार प्रश्न करनेके लिये उद्यत | गये और वहाँ उन्होंने देखा कि सूतजी अग्निष्टोम देखकर उत्तम बुद्धिवाले शौनकजी विनयसे झुक यज्ञके द्वारा अनन्त अपराजित भगवान् नारायणका गये और हाथ जोड़कर बोले।
यजन कर रहे हैं। सूतजोने उन विख्यात तेजस्वी | शौनकजीने कहा- महर्षियो ! पवित्र सिद्धाश्रम- | महात्माओंका यथोचित स्वागत-सत्कार किया। तीर्थमें पौराणिकॉमें श्रेष्ठ सूतजी रहते हैं। वे वहाँ तत्पश्चात् उनसे नैमिषारण्यनिवासी मुनियोंने इस अनेक प्रकारके यज्ञद्वारा विश्वरूप भगवान् विष्णुका प्रकार पूछावजन किया करते हैं। महामुनि सूतजी व्यासजीके ऋषि बोले-उत्तम व्रतका पालन करनेवाले शिष्य हैं। वे यह सब विषय अच्छी तरह जानते सूतजौ! हम आपके यहाँ अतिथिरूपमें आये हैं, हैं। उनका नाम रोमहर्षण हैं। वे बड़े शान्त | अतः आपसे आतिथ्य-सत्कार पानेके अधिकारी