छत्रसाल : रामचंद्र वर्मा हिंदी पुस्तक | Chhatrasaal : Ramchandra Verma Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : छत्रसाल है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ramchandra Verma | Ramchandra Verma की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Ramchandra Verma | इस पुस्तक का कुल साइज 9.84 MB है | पुस्तक में कुल 304 पृष्ठ हैं |नीचे छत्रसाल का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | छत्रसाल पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, history, Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Chhatrasaal | This Book is written by Ramchandra Verma | To Read and Download More Books written by Ramchandra Verma in Hindi, Please Click : Ramchandra Verma | The size of this book is 9.84 MB | This Book has 304 Pages | The Download link of the book "Chhatrasaal" is given above, you can downlaod Chhatrasaal from the above link for free | Chhatrasaal is posted under following categories Biography, history, Stories, Novels & Plays |
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ड देवीका परसाद 1 समरण हो आया कि बालयावसथाके मधुर सवपनका आननद लेनेके समय अ- कटमात बीचमें ही हम लोगोंकी मितरता और उसके साथ हमारी सारो कलप- साभोंका किस परकार विनाश हो गया और परसपर एक दूसरेकी सहायता करने- वाढी तलवारें किस शरकार एक दूसरेकी खूनकी पयासी हो गई । उनहोंने एक वार फिर अपने ठडकपनके मितरकी ओर देखा । वे अचछी तरद समझ गये कि यदयपि वालयावसथाके कलपनाओोंके अकुरसे बडा शरकष न तैयार हुआ ही तो थी यह अकुर पदलेकी तरह जयोंका तयों वना है उसका समूल नाश नहीं हुआ है। यह सोचकर चमपतरायके मनमें कुछ डु ख हुआ कि दमने आज तक अपने मिननके मनवाले अकुरको बढ़ने न दिया वलकि समय समय पर उस पर आधात किया उनके अविवेक और विचारशूनयताका उचित बदला लेकर ही दम सनदुषट हुए । उनदोंने उसी समय मनमें निशचय किया कि अब तक जो कुछ भूल हुईं है उसका सुघार होना चाहिए और अपने मितरके मानसिक दोपका कारण पूछकर उसे निमूल करना चाहिए । अपने पुराने मानापमानकी सब बाते वे भूल गये । चमपतराय मेल करनेके छिए जयोंही कुछ वोठना चाहते थे तयोंददी उनहोंने देखा कि झुभकरण मेरी ओर करुणादषटिसे देख रहे हैं और दूर खडे हुए ढॉडेरके राजा कंचुकीरायसे वारतें कर रहे हैं। मानी चमपतरायका सवाभिमान फिर जाम- त हुआ । वे सन-ही-मसन यह निशचय करके पासके एक आसनपर बैठ गये कि इस देशदरोददीके पराण छेकर इसकी लाशपर ही बुदेखखडकी सवतंतरताका झंडा खड़ा करना चाहिए । वालयावसथाकी झुभकरणकी परेमपूबक मितरताका समरण करके तो चमपतरा- -यका हृदय पुराने परेमसे भर जाता था और उसके उपरानतका उनका दुटतापूरण वयवहार याद करके तुरनत ही उनके मनमे घरणा उतपनन दो आती थी । इतनेमें ओडछेके राजा पहाडरसिंह और उनकी रानी दीरादेवीका वहाँ सपरिवार आग- मन हुआ । उनके चोपदार तथा दूसरे सेवक उस समय भी उनके साथ थे 1 जयोंही राजा पहाडसिंहकी सवारी मनदिरके दरवाजेके पास पहुँची तयोंही उनके चारणों और भाटोंने लकार कर उनकी विरुदावलीका वखान आरमभ किया । कदाचित यह जाननेके छिए कि देवी इस छछकारका कया उततर देती है उनकी सवारी थोड़ी देर तक दरवाजे पर ही रुकी रही । अभिमानी पदाइसिंद और उनके चारणों आदिको यह वतलानेके ढिए कि यह यरवोक देवोको सवीकार नहीं है उनकी ललकारका परतयेक शबद शरतिषवनिके रूपमें उनके कानोंतक