श्री रामचरित मानस : शर्मा सत्य नारायण | Sri Ramcharit Mans : Sharma Sataya Narayan के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : श्री रामचरित मानस है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Sharma Sataya Narayan | Sharma Sataya Narayan की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Sharma Sataya Narayan | इस पुस्तक का कुल साइज 930.5MB है | पुस्तक में कुल 312 पृष्ठ हैं |नीचे श्री रामचरित मानस का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | श्री रामचरित मानस पुस्तक की श्रेणियां हैं : hindu
Name of the Book is : Sri Ramcharit Mans | This Book is written by Sharma Sataya Narayan | To Read and Download More Books written by Sharma Sataya Narayan in Hindi, Please Click : Sharma Sataya Narayan | The size of this book is 930.5MB | This Book has 312 Pages | The Download link of the book "Sri Ramcharit Mans" is given above, you can downlaod Sri Ramcharit Mans from the above link for free | Sri Ramcharit Mans is posted under following categories hindu |
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दो०-सुमिरत रामहि तर्जातं जन तृन सम विषय विलासु।
राम प्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु ॥ १४० ॥
जिन श्रीरामचन्द्रजीका स्मरण करने से ही भक्तजन तमाम भोगविलासको तिनके के समान त्याग देते हैं, उन श्रीरामचन्द्रजीकी प्रिय पत्नी और जगत्की माता सीताजीके लिये यह [ भोग-विलासका त्याग ] कुछ भी आश्चर्य नहीं है ॥ १४० ॥ नौ-पीय लखन जेहि बिधि सुख लहड़ीं। सोइ रघुनाथ करहिं सोइ कहद्दीं ॥
कहहिं पुरातन कथा कहानी । सुनहिं लखनु सिय अति सुख मानी ॥ १ ॥
सीताजी और लक्ष्मणजीको जिस प्रकार सुख मिले, श्रीरघुनाथजी वही करते और बही कहते हैं। भगवान् प्राचीन कथाएँ और कहानियाँ कहते हैं। और लक्ष्मणजी तथा सीताजी अत्यन्त सुख मानकर सुनते हैं ॥ १ ॥
जब जब रामु अवध सुधि करहीं । तब तब बारि बिलोचन मरहीं ॥ सुमिरि मानु पिनु परिजन भाई। भरत सनेहु सोलु सेवकाई ॥ २ ॥
जब जब श्रीरामचन्द्रजी अयोध्याकी याद करते हैं, तब रान उनके | नेत्रों में जल भर आता है। माता-पिता, कुटुम्बियों और भाइयों तथा भरतके प्रेम, शील और सेवाभावको याद करके ॥ २ ॥
कृपासिंधु प्रभु होहिं दुखारी। धीरजु धरहिं कुसमउ विचारी ॥ लम्बि खिष लखनु बिकल होइ जाहीं । जिमि पुरुषहि अनुसर परिछाहीं ॥३॥
कृपाके समुद्र प्रभु श्रीरामचन्द्रजी दुखी हो जाते हैं, किन्तु फिर कुसमय समझकर धीरज धारण कर लेते हैं। श्रीरामचन्द्रजीको दुखी देवकर सीताजी और लक्ष्मण जी भी व्याकुल हो जाते हैं, जैसे किसी मनुष्पकी परछा। उस मनुष्यके समान ही चेष्टा करती है ॥ ३ ॥ प्रिया बंधु गति लखि रघुनंदनु । धीर कृपाल भगत उर चंदनु ।
वे कहने कछु कथा पुनीत। ।मुनि सुख लहहि लखनु अरु सीता ॥ ४ ॥
नत्र धीर, कृपालु और भक्तों के हृदयको शीतल करने के लिये चन्दन| रुप, रघुकुलको आनन्दित करनेवाले श्रीरामचन्द्रजी प्यारी पन्नी और
भाई मशकी दशा देखकर कुछ पवित्र कथाएँ करने लगते हैं, जिन्हें मुनकर लक्ष्मणजी और सीताजी मुख प्राप्त करते हैं ॥ ४ ॥ दो०-गम लखन सीता सहित सोहत परन निकेत।
जिमि वासव वस अमरपुर सची जयंत समेत ॥ ११ ॥