साधना संगम प्रभात : इन्द्रपाल राणा हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Sadhna Sangam Prabhat : Indrapal Rana Hindi Book Free PDF Download

साधना संगम प्रभात : इन्द्रपाल राणा | Sadhna Sangam Prabhat : Indrapal Rana

साधना संगम प्रभात : इन्द्रपाल राणा | Sadhna Sangam Prabhat : Indrapal Rana

साधना संगम प्रभात : इन्द्रपाल राणा | Sadhna Sangam Prabhat : Indrapal Rana के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : साधना संगम प्रभात है | इस पुस्तक के लेखक हैं : indrapal rana | indrapal rana की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 9.6 MB है | पुस्तक में कुल 128 पृष्ठ हैं |नीचे साधना संगम प्रभात का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | साधना संगम प्रभात पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, Knowledge

Name of the Book is : Sadhna Sangam Prabhat | This Book is written by indrapal rana | To Read and Download More Books written by indrapal rana in Hindi, Please Click : | The size of this book is 9.6 MB | This Book has 128 Pages | The Download link of the book "Sadhna Sangam Prabhat" is given above, you can downlaod Sadhna Sangam Prabhat from the above link for free | Sadhna Sangam Prabhat is posted under following categories dharm, hindu, Knowledge |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 9.6 MB
कुल पृष्ठ : 128

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समय का चक्क चलता रहा मैं मी समय का घपड़ा खाता रहा कष्ट पर कष्ट भोगता रहा । कृष्ट से इतना जर्जर हो गया कि तेरा नाम व पता ही विस्मृत हो गया परन्तु तुम मुझे स्मृत करती रही मेरे बारे में सोचती रही परन्तु आमना
सामना नहीं हो पाया। आयु के अगले पड़ाव पर सांसारिक कामनाओं में खोता रहा तुम अपना आभास दिलाती रही। पढ़ा लिखा जीवन रहस्य के समझा,लोग मिले दुनियादारी मिली,अच्छे बुरे,भले मिले । मैं दुनिया के कामों में फसा दुनियादारी के लिये प्रयास पर प्रयास करता रहा और तू विरोध पर विरोध,कभी तुम विजयी रही तो कभी मैं । लुका छिपी का खेल चलता रहा तुम्हारी मौन स्वीकृति से मैं मायावी दुनिया में कुछ समय के लिये खो गया । जब बाहर निकलकर देखा तो तुम नही थी। मैं बेबस लाचार तेरा इन्तजार करने लगा । समय पर समय जाता रहा गरीबी `में जीवन रहा अभाव में रहा, संकट में रहा पर तेरा पता नहीं रहा । जब तुम्हारी दया(अदृश्य) दृष्टि से अध्यापक (शिक्षक) हुआ तब तेरे सामीप्य का अभाव महसूस किया। तुझे प्राप्त करने का प्रयास भी किया पर शिथिलता का सहयोगी होने के कारण तेरा पता नहीं कर पाया । पुनः समय का विपरीत चक्क चला परिवार, समाज,आदि के कटु शब्दों
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2 Comments

  1. बहुत ही अच्छा कार्य किया जा रहा है आपके द्वारा आपसे अनुरोध है की तांत्रिक पुस्तकों को अधिक से अधिक संख्या में शामिल करें बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं आप इसके लिए आप को कोटि-कोटि धन्यवाद

    • आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद अमर यादव जी !
      आपके कहे अनुसार हम जल्द ही यहाँ पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन तंत्र सम्बन्धी पुस्तकें अवश्य उपलब्ध करायेंगे |

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