योगीगुरू या योग ओर साधन पध्दति : परमहंस परिव्राजकाचार्य | Yogiguru SadhanPadhdti : Parmhns Parivrajkacharya के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : योगीगुरू या योग ओर साधन पध्दति है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Parmhns Parivrajkacharya | Parmhns Parivrajkacharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Parmhns Parivrajkacharya | इस पुस्तक का कुल साइज 7.3MB है | पुस्तक में कुल 342 पृष्ठ हैं |नीचे योगीगुरू या योग ओर साधन पध्दति का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | योगीगुरू या योग ओर साधन पध्दति पुस्तक की श्रेणियां हैं : health
Name of the Book is : Yogiguru SadhanPadhdti | This Book is written by Parmhns Parivrajkacharya | To Read and Download More Books written by Parmhns Parivrajkacharya in Hindi, Please Click : Parmhns Parivrajkacharya | The size of this book is 7.3MB | This Book has 342 Pages | The Download link of the book "Yogiguru SadhanPadhdti" is given above, you can downlaod Yogiguru SadhanPadhdti from the above link for free | Yogiguru SadhanPadhdti is posted under following categories health |
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अतएव सृष्टिके पहले शब्द उत्पन्न हुवा है। शब्दसे सिलसिलेवार अन्य दूसरे महाभूत एवं यह चराचर विश्व उत्पन्न होगा। इसीलिये शाषकाने "नादात्मकं जगत् कर बताया है। तमी तो देखिये, कि शब्द कसा क्षमताशाली होता है। योगबलशाली बदपिगणके
यते यही शब्द गुंध एवं मन्त्रकै रूपमें निकल कर एक अलौकिक शक्तिसम्पन्न एवं दीर्थ्यशाली बना है। शब्दसे क्या नहीं होला ! कोई व्यक्ति अपने मित्रोंके साथ मौजे मार रहा है, ठीक उसी समय यदि अदूरमें ( पास में ) करुण क्रन्दन-ध्वनि (फूट-फूट कर रोनेका शब्द ) मुनाई दे तो वह कमी उस तरह हँस खेल न सयेगा। मान लो कि मैं किमी व्यक्तिले प्रेम नहीं करता, फिन्तु यह यदि गिड़ गिट्टार पण एवं समुचित शब्दसे मेरी स्तुति करने लगे तो अवश्य ही मेरा कठिन हृदय पिघल जायगा। सारांश, शब्दसे ही
व परस्पर आद्ध हैं। कोयलकी कूक (शब्द) सुननेसे या मीरका मन् मन् शब्द कानमें आनेसे मनमें न जाने क्यों एक अशीय आकांना पैदा होती हैं, न जाने किस जन्म-जन्मान्तरकी पुरानी बात यदि आ जाती हैं। इसी प्रकार मेघ ( वाइल) की गड़गड़ाहट गन्न या मोर के-फा शब्द सुननेसे दूसरे ही प्रकारके भावका
दय होता है ; मनमें किसी अमूर्त प्रतिमाकी मूर्ति स्थापित हो जाती है। ऽल्द ही सङ्गीतको प्राण है; इसीलिये गाना सुनकर लोग | आमाको ो देते और पागल जैसे बन भाते हैं। शब्दसे जब मुग्ध हो जाता है; शब्दसे विश्व-ब्रह्माण्ड संगठित हुआ है ; हरि एवं हर भी नासे अभिन्न नहीं हैं।