आँख की किरकिरी | Aankh Ki Kirkiri

आँख की किरकिरी | Aankh Ki Kirkiri

आँख की किरकिरी | Aankh Ki Kirkiri के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : आँख की किरकिरी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ravindranath Tagore | Ravindranath Tagore की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 19.8 MB है | पुस्तक में कुल 289 पृष्ठ हैं |नीचे आँख की किरकिरी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | आँख की किरकिरी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays, education

Name of the Book is : Aankh Ki Kirkiri | This Book is written by Ravindranath Tagore | To Read and Download More Books written by Ravindranath Tagore in Hindi, Please Click : | The size of this book is 19.8 MB | This Book has 289 Pages | The Download link of the book "Aankh Ki Kirkiri" is given above, you can downlaod Aankh Ki Kirkiri from the above link for free | Aankh Ki Kirkiri is posted under following categories Stories, Novels & Plays, education |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 19.8 MB
कुल पृष्ठ : 289

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महेन्द्रने कहा, “मा, आजकलके लड़के तो मेरे सिवा और भी बहुतसे हैं।” राजलक्ष्मीने कहा, “बेटा, यही तो तेरेमें दोष है। तेरे आगे ब्याकी बात छेड़ना ही मुश्किल है।” महेन्द्रने कहा, “मा, इस बातको छोड़कर और भी तो बहुत-सी बातें हैं, संसारमें बातोंकी तो कोई कमी नहीं। इसलिए मेरा यह दोष ऐसी कोई खतरनाक नहीं ।” महेन्द्र बचपनसे ही पितृहीन है; और इसीलिए माके साथ उसका व्यवहार साधारण पुत्रों-जैसा नहीं है। महेन्द्रकी उमर लगभग बाईस सालकी हो चुकी, और अब वह एम० ए० पास करके डाक्टरी पढ़ रहा है, किन्तु फिर भी माके साथ उसका प्रतिदिनको बाल-हठ, रूठना - मचलना और अपनी जिदपर अड़ जाना ज्यों-का-त्यों जारी है। कंगारूका बच्चा जैसे मातृगर्भसे जन्म लेनेके बाद भी माके बहिर्गर्भके थैलेमें अपनेको आवृत रखनेको अभ्यस्त बन जाता है, महेन्द्रकी मी ठीक वही दशा है।

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