आचारांग | Acharang के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : आचारांग है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Unknown | इस पुस्तक का कुल साइज 14 MB है | पुस्तक में कुल 488 पृष्ठ हैं |नीचे आचारांग का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | आचारांग पुस्तक की श्रेणियां हैं : Social
Name of the Book is : Acharang | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : Unknown | The size of this book is 14 MB | This Book has 488 Pages | The Download link of the book " Acharang" is given above, you can downlaod Acharang from the above link for free | Acharang is posted under following categories Social |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
भावनाएं प्रस्तुत करते हैं:--पहली तो यह कि मानव जीवन पाकर जो ज्ञान के लिए पुरुषार्थ करके इसे प्राप्त करते हैं, वे ही मनुष्य अधिकार के रूप में पाये हुए साधनों का पूर्ण सदु|पयोग कर सकते हैं। यह निस्संदेह कहा जा सकता है और । दूसरी भावना यह है कि ज्ञानी पुरुषों के बचन स्वानुभव से पूर्ण होने से नवीन से लगते हैं और अंतःकरण में प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं । तव नए इसलिए लगते हैं कि वे अपने अनुभव से कुछ अलग ही तरह से कहते हैं । इसलिए रूढिमत मानस होने से कई बार वे पचा भी नहीं सकते तो भी कुछ अद्भुत लगने से वे ज्ञानरुचि उत्पन्न कर सकते हैं । यह कह कर सूत्रकार यह कहना चाहते हैं कि-ज्ञानी पुरुषों की इस |विचित्रता को देखकर कोई द्वेष भी न करे, एवं अंधभक्त भी न बने । परंतु उनकी शिक्षा को जीवन में उतारने के हेतु सच्चा प्रयत्न करे । वह किरण नई लगने पर भी अपनी शक्तिके अनुसार उसे पचाने की चेष्टा करे, क्योंकि उनके वचन संसार स्वरूप का पूर्ण अनुभव पाने के बाद निकलने से उन वचनों में अनुपम प्रेरणा शक्ति होती है और वे जो कुछ कहते हैं । इसमें जगत्कल्याण के सात्विक हेतु के सिवाय दूसरा कोई । हेतु नहीं होता ।