अहंकार : आशापूर्णा देवी हिंदी पुस्तक मुफ्त डाउनलोड | Ahankar : Ashapurnaa Devi Hindi Book Free Download के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : अहंकार है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ashapoorna Devi | Ashapoorna Devi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Ashapoorna Devi | इस पुस्तक का कुल साइज 4.13 MB है | पुस्तक में कुल 127 पृष्ठ हैं |नीचे अहंकार का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अहंकार पुस्तक की श्रेणियां हैं : Uncategorized, Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Ahankar | This Book is written by Ashapoorna Devi | To Read and Download More Books written by Ashapoorna Devi in Hindi, Please Click : Ashapoorna Devi | The size of this book is 4.13 MB | This Book has 127 Pages | The Download link of the book "Ahankar" is given above, you can downlaod Ahankar from the above link for free | Ahankar is posted under following categories Uncategorized, Stories, Novels & Plays |
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उत्तेजित जनता न जाने कब से दीपक मैन्सन के सामने खड़ी तर्क-वितर्क कर रही थी । कुछ लोग गालियाँ दे रहे थे कुछ रह-रहकर चिल्लाते हुए चेतावनी देते हुए धमकियाँ दे रहे थे। उत्ताप बढ़ता जा रहा था क्योंकि बहुतेरे फालू लोग राह चलते रुककर तमाशा देखने लगते थे। जैसा कि भीड़ का हाल होता है बिना जाने-बूझे ही गाली-गलौज कर रहे थे। मकान का गेट पार कर सामने के लॉन पर लोग इकट्ठा होने लगे थे। विशाल जनसमूह भले ही गेट के बाहर इकट्ठे हो नीचे के सात नम्बर फ्लैट का दरवाजा ही उनका एकमात्र लक्ष्य है यह बात सात नम्बर के दरवाजे को देखने से मालुम हो रहा था। इस बन्द दरवाजे के सामने खड़ी क्या कह रही है यह तो ठीक से पता नहीं लग रहा था पर इतना जरूर मालूम पड़ रहा था कि वे कह रहे हैं निकल साले...तेरी चमड़ी उधेड़ लूँ। हालाँकि कोई चमड़ी उधेड़वाने बाहर नहीं आ रहा था और इसीलिए दरवाजे पर लात धक्के पड़ रहे थे । देखकर लग रहा था दीपक मैन्सन का यह मजबूत दरवाजा कहीं टूट न जाए और यह उत्तेजित जनता बलपूर्वक भीतर घुसकर सब कूछ तहस-नहस कर देगी। क्या पता चमड़ी उधेड़ डालने बाला भयंकर काम करने के लिए कुछ न करना पड़े । ख़िड़कियाँ तक बन्द थीं । आसपास के मकानों के नीचे की मंजिल के कमरों के खिड़की दरवाजें का भी यही हाल था बन्द थे । वहाँ के बाशिन्दों के मन में कौतूहल से ज्यादा भय था। ऊपर के बाकी तीनों मंजिलों के बाशिन्दे खिड़कियाँ ठीक से न खोलते हुए अथवा सामने के बरामदों में निकलते हुए कौतुहल चरितार्थ करने के लिए ताक-झाँक कर रहे थे...वह भी बाथरूम या रसोई की खिड़की से । उन्हें इस घटना का कारण नहीं मालूम है उन्होंने तो बस इतना ही देखा है कि कुछ लोग जी जान से भागते हुए एक आदमी का पीछा कर रहे थे और ह