भाई हिंदी पुस्तक पीडीऍफ़ में | Bhai hindi book in pdf के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : भाई है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Munshi Premchand | Munshi Premchand की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Munshi Premchand | इस पुस्तक का कुल साइज 2.75 MB है | पुस्तक में कुल 138 पृष्ठ हैं |नीचे भाई का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भाई पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays, Uncategorized
Name of the Book is : Bhai | This Book is written by Munshi Premchand | To Read and Download More Books written by Munshi Premchand in Hindi, Please Click : Munshi Premchand | The size of this book is 2.75 MB | This Book has 138 Pages | The Download link of the book "Bhai" is given above, you can downlaod Bhai from the above link for free | Bhai is posted under following categories Stories, Novels & Plays, Uncategorized |
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रिक्रशेवाला 1३] की रक्षा के लिये गगन चुम्बी लांध्य घाटियों पर केवल बीस पच्चीस रुपए सेकर कोन लड़ रद्द ट्द ... «देश का नवनिमोण कौन कर रहा है ...किसके बल पर यदद देश में अयोगिक क्रान्ति हुई है. ८. ? ...शायद वे नहीं जानते ८ «८ ८ «० «। ..लेकिन वे यह तो जानते हूं कि देश की ्ाजादी में खून किस का चद्दा । किसके साई बहनों ने फॉसी के तख्ते की शोभा घढाई। किसके बंघु्मों ने ्पना सारा श्रनमोल जीवन जलाबतनी में गेँवांया «८««- ड _.. --. पसीने से लथपथ चस्त्रद्दीन काली स्याद देह छुर्र्यों से भरा मुख-मण्डल सूखे सन के समान उलमे हुए रूखे केश घुटनों तक एक फटी पुरानी कोपीन रपिटे संगे पॉव यह रिक्ंशो चाला इस मई जून की कड़कड़ाती घूंप में भागा चला जा रंहू था। उसका मु दे विल्ऊुल घाकनी सा बन रहा था पेरों का सारा लट्ठ मर गया था । वे लकड़ी के समान निर्जीव हो रहे थे । पल भर के लिये दम लेना बदद जैसे जानता दी न था । घस चह्द दौड़ा चला जा रद था | दजारों मील वह दौड़ चुका था श्रौर पता नददीं उसे अब कितना और दौड़ना था ! उसकी मुख मुद्रा बड़ी बिकृत दो रही थी । वेचेनी ब्यग्रता और बिपाद की काली छाया उसके मुख पर॑ खेल रही थी। ऐसा प्रतीत दोता था कि मानों उसकी आत्मा इत ब्या- घियां के प्रभेब् से बिल्कुल निस्तेज होती चलती जा रद्दी थी