भजन संग्रह : कबीर | Bhajan Sangrah : Kabeer

भजन संग्रह : कबीर | Bhajan Sangrah : Kabeer

भजन संग्रह : कबीर | Bhajan Sangrah : Kabeer के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : भजन संग्रह है | इस पुस्तक के लेखक हैं : kabir | kabir की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 13.1 MB है | पुस्तक में कुल 109 पृष्ठ हैं |नीचे भजन संग्रह का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भजन संग्रह पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, music, Poetry

Name of the Book is : Bhajan Sangrah | This Book is written by kabir | To Read and Download More Books written by kabir in Hindi, Please Click : | The size of this book is 13.1 MB | This Book has 109 Pages | The Download link of the book "Bhajan Sangrah" is given above, you can downlaod Bhajan Sangrah from the above link for free | Bhajan Sangrah is posted under following categories dharm, hindu, music, Poetry |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 13.1 MB
कुल पृष्ठ : 109

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.. Initirli Jilhaja। .. ॥ हिंदी भजन ॥
jaamakii naathi salaay kare.in जानकी नाथ सहाय करे जब कौन बिगाड़ कर नर तगे ॥
Ram Bhajan sturii raamachandra kRipaalu श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् । नवकन्न लोचन कक्ष मुखकर कन्नपद कन्नारुणम् ।। १ ।।
सुरज मंगल सौम भृगु मुत बुध और गुरु वरदायक तेरो । राहू कनु की नाहिं गम्यता संग शनीचर हीन हुचेगे ॥
कंदर्प अगणित अमिन छबि नव नील नीरज सुन्दरम् । पटपीत मानहूं तड़ित रुचि मुचि नौमि जनक मुनावरम् ॥ २ ॥
दष्ट दःशासन विमल द्रौपदी चीर उतार कुमंतर प्रेग्ने । ताकी सहाय करी करुणानिधि बढ़ गय चीर क भार बनेगे ॥
भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम् । रघुनन्द आनंदकंद कांशल चन्द दशरथ नन्दनम् ॥ ३ ।।
जाकी सहाय करी करुणानिधि नाक जगत में भाग वढ़ हो । रघुवंश संतन सुखदायी तुलदास चरनन को चेरी ॥
सिर मुकुट कुण्डन तिलक चारू उदार अङ्ग विभूषणम् । आजानुभुज सर चापधर सग्राम जिन खरदूषणम् ॥ ४ ।।
raghukul praga To hai.nl रघुकुन प्रगट हैं रघुबीर ॥
इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम् । मम हृदयकनं निवास कुरु कामादिग्बलदलमञ्जनम् ॥ ५ ॥
देस दस से टीको आयो रतन कनक मनि हीर ।
घर घर मंगल होत वधाई भै पुरवासिन भीर ।
Tlumak Talat raamarliandra ठुमक चन्नत रामचंद्र बाजत पैंजनियां ॥
आनंद मगन होइ सब डोलन कछु ना सौंध शरीर ।
किनकि किनकि उठन धाय गिग्न भूमि लटपटाय । धाय मान गोद लेन दशरथ की रनियां ।।।
मागध व ही सवै लुटावें गौ गयंद हुय चीर ।
अंचल रज़ अंग झारि विविध भांति सो दृन्नारि । तन मन धन वारि वारि कहुत मृद बचनियां ॥
दत असीस मृर चिर जीवौं रामचन्द्र रणधीर ।
badhaivaa Laajo बधैया वाज़ आंगन में वर्धया वाजे ॥
विद्म से अरुण अधर वोलत मुख मधुर मधुर । सुभग नासिका में चार लटकन लटकनियां ॥
राम लखन शत्रुघन भग्न ज़ी झूले कंचन पालन में । बधैया वाजें आंगन में वर्धया बाजे ॥
तुलसीदास अति आनंद दम्ब के मुखारविंद । रघुवर छवि के समान रघुवर छवि बनियां ॥
राज्ञा दसरथ रतन लुटावै नाज़ ना कोउ माँगने में । बधैया बाज़ आंगन में बधैया बाजे ॥
blaj man raam Charal भज मन राम चरण मुम्बदाई ||
प्रेम मुदित मन तीनों रानि मगन मनानैं मन ही मन में । बवैया वाज़ आंगन में बधैया बाजे ॥
जिन चरनन में निकली सुरमरि शंकर जटा समाय । जटा शन्करी नाम पड़यों है त्रिभुवन नारन आयी ॥
राम जनम को कौतुक देखन वीती रजनी जागन में बधैया बाज़ आंगन में बधैया बाज़ ॥
शिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक शेष सहस मुग्व गायी । तुलदास मारुतमुत की प्रभु निज मुख करत बढ़ाई ॥

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