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भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी : रामविलास शर्मा | Bharat Ke Prachin Bhasha Parivar Aur Hindi : Ramvilas Sharma

भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी : रामविलास शर्मा | Bharat Ke Prachin Bhasha Parivar Aur Hindi : Ramvilas Sharma

भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी : रामविलास शर्मा | Bharat Ke Prachin Bhasha Parivar Aur Hindi : Ramvilas Sharma के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ramvilas Sharma | Ramvilas Sharma की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 63.0 MB है | पुस्तक में कुल 376 पृष्ठ हैं |नीचे भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, india, Knowledge

Name of the Book is : Bharat Ke Prachin Bhasha Parivar Aur Hindi | This Book is written by Ramvilas Sharma | To Read and Download More Books written by Ramvilas Sharma in Hindi, Please Click : | The size of this book is 63.0 MB | This Book has 376 Pages | The Download link of the book "Bharat Ke Prachin Bhasha Parivar Aur Hindi" is given above, you can downlaod Bharat Ke Prachin Bhasha Parivar Aur Hindi from the above link for free | Bharat Ke Prachin Bhasha Parivar Aur Hindi is posted under following categories history, india, Knowledge |

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पुस्तक का साइज : 63.0 MB
कुल पृष्ठ : 376

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हा० पोप ने संत के इति भाषायों की समानता रचानी थी। उस समानता के बारे में इन दिनों में भी लिखा है जो इसका कारण हुन र प्राय की विजय मानते थे। वोव ने गुरुप की भाषामों पर भारत की पड़ी ईरानी भाषा से विड़ | भाषाओं की समानता पर ध्यान दिया था। दुरुप में दृषि ते थे और वहाँ भी घाय ने पार में राशि किया, यह किसी ने नहीं की। कि भारत में मार्ग-द्रविड़ भाषामों की भाग देसर मार्य-श्रय द्रविड़-पराजय का भात मान लिया गया । कुछ लोगों को इस बात से गरी दिन थी कि पूरा को भापायों से दुनिट समुदाय के समय पर विचार न किया जाय। सारा ध्यान घायं-इनिङ संघर्ष पर, पौर पराकै भागत परिणाम पर, केन्द्रित किया जाय । किन्तु १८ सदी में अभी यह दृष्टिकोण रू-प्रभुत्व-सम्पन्न न हुआ था । १=३० में डा० पोर ने मा म-ह के एक नवेश सर्मन सैन् । माइन्टका अनुवाद चार प्रति भावासों में प्रकाशित किया था। इसके साथ उन्होंने वाद-नानी सौर प विकारों की सभी प्रस्तुत को शीं । इशाको भूमिका में इन्होंने इन भाषामों में केत और जर्मन भाषायों के सुप्रतिष्ठित सम्वन्धों और मीटर ऐक्रीटिव) का उल्लेख किया था।
थोरै हेरफेर से नौबवेल सम्बन्धों को यह बात मानते थे, केवल उनका कहना था कि कि परिवार से इविड़ भापन्निों का सम्बन्ध सौर भी घनिष्ठ है। युग की | भाषान्नों में उन्होंने केस समुदाय को शक परिवार के सबसे निकट माना। उन्होंने इन गम्भावना का अलग किया कि फिन परिवार की भाषाएँ गुरुय में केसों के वचने से पहले व्यापक रूप में दी जाती रही होगी। उन्होंने कहा मह त सम्भव है कि द्रविड़ यापी के कृश अाहरण झप, पर उनसे कुछ अधिक शब्द-मुन उरी स्रोत से इस हुए हैं जिसने इन्डीयूरोपियन भाषामों के वैसे ही स्प घोर शब्द-मूल उत्पन्न हुए हैं।
कौडवेल ने प्राः वलीक नाम के विद्वान् का इवाला दिया जिन्होंने इन्डोयूरोपियन मौर द्रविड़ भागों में नगर निगम के व्यवहार को एक महत्वपूर्ण समानता माना था। उनका कहना था कि यह दो भाषा-परिवार हैं जिनमें तीन दिन है, यह म्भर नहीं पता कि इन्होंने एण-दूसरे से स्वतन्ध रहकर नगर लिग का विकास किया हो। लीक का हवाला देने के बाद इन में मिला कि हि भाषाओं में जगभेद इनके विकास में बाद की गंजित की बात है पर बहुत दिन साथ रहने से संस्कृत के जो तत्व द्रविड़ भावापों में मा गये हैं, उन्हें अलग रखते हुए हमें इंगिड़

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