अलाव से रिएक्टर तक | Alaav Se Reactor Tak

अलाव से रिएक्टर तक : अरविन्द | Alaav Se Reactor Tak : Arvind

अलाव से रिएक्टर तक : अरविन्द | Alaav Se Reactor Tak : Arvind के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अलाव से रिएक्टर तक है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Arvind Gupta | Arvind Gupta की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 1.1 MB है | पुस्तक में कुल 100 पृष्ठ हैं |नीचे अलाव से रिएक्टर तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अलाव से रिएक्टर तक पुस्तक की श्रेणियां हैं : education, Knowledge, science

Name of the Book is : Alaav Se Reactor Tak | This Book is written by Arvind Gupta | To Read and Download More Books written by Arvind Gupta in Hindi, Please Click : | The size of this book is 1.1 MB | This Book has 100 Pages | The Download link of the book "Alaav Se Reactor Tak" is given above, you can downlaod Alaav Se Reactor Tak from the above link for free | Alaav Se Reactor Tak is posted under following categories education, Knowledge, science |


पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 1.1 MB
कुल पृष्ठ : 100

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पृथ्वी पर ऐसी बहुत सी शृंखलाएं काम करती हैं। बिजलीघरों में , जहाजो पर, और भी बहुत सी जगहों पर।
ऊर्जा के प्रायः सभी रूपों को लोग यांत्रिक ऊर्जा में बदलते हैं। इस ऊर्जा की मनुष्य को सबसे अधिक आवश्यकता है। यही ऊर्जा रेलगाड़ियों को पटरियों पर चलाती है, विमानों को आकाश में उठाती है, क़मीजे "सीती" है, मोटरगाड़िया " बनाती" है। हमारे हृदय की यात्रिक ऊर्जा रक्तवाहिकाओं में रक्त का संचार करती है, और मांसपेशियों की ऊर्जा की बदौलत हम चल-फिर सकते हैं, पढ़-लिख सकते है।
अच्छा, यह तो ठीक है। हमने खुराद पर कोई पुर्जा बना लिया, या मशीन पर कमीज़ सी ली। पर वह ऊर्जा कहा गई, जिसने इस काम में हमारी मदद की थी ? उसका क्या हुआ? क्या वह पुर्जा, या कमीज़ या कुछ और चीज़ बन गई? नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
ऊर्जा के साथ कुछ भी क्यों न किया जाये , वह ऊर्जा ही रहती है। वह न नष्ट होती है , न बनती है। वह तो बस एक रूप से दूसरे रूप में बदलती है।
और जब ऊर्जा आदमी की मदद कर चुकी होती है - इस्पात गलाने का, माल ढोने का , या टेलीविजन पर कोई कार्यक्रम दिखाने का काम कर चुकी होती है, तो वह अनिवार्यत ऊष्मा यानी ताप ऊर्जा बन जाती है।
ज़रा देखो: इंजन हवा से बातें करता चला आ रहा है। उसके पीछे डिब्बों की लबी कतार है। सामने से आती हवा इंजन से टकराती है, हर पायदान मे फमती है। डिब्बो की छतो और दीवारों से रगड़ती है। ट्रेन को आगे बढ़ने से रोकती है। डिब्बों तले पहिये ठक-ठक करते हैं, पटरियों पर चलते हैं, और वे भी पटरियों से रगड़ पाते है। यह रगड़ हो, जिसे घर्पण भी कहते हैं , इजन की प्रायः सारी शक्ति खा जाती है।
रगड़ से तो हर चीज गरम होती है। इस बात की जाप बड़ी आसानी से की जा सकती हैं। अपनी हथेलियां रगड़ कर देखो - तुरन्त ही पता चल जायेगा।
तो क्या इजन अपने नाम से पटरियों और हवा को गरम करता है? हा। फिर यह ऊष्मा वायुमण्डल में चली जाती है, और वहा में आगे अंतरिक्ष में।
यही बात कार पर भी लागू होती है। कार के लंबे मफर के बाद पहिये को हाथ लगाकर देखो, पता है कितने गरम होने हैं!

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