भावार्थ रामायण | Bhavartha Ramayana

भावार्थ रामायण : श्री एकनाथ महाराज | Bhavartha Ramayana : Shri Eknath Maharaj

भावार्थ रामायण : श्री एकनाथ महाराज | Bhavartha Ramayana : Shri Eknath Maharaj के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : भावार्थ रामायण है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Eknath maharaj | Eknath maharaj की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 87 MB है | पुस्तक में कुल 1086 पृष्ठ हैं |नीचे भावार्थ रामायण का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भावार्थ रामायण पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

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पुस्तक का साइज : 87 MB
कुल पृष्ठ : 1086

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भावार्थ रामायण
मॉलर आप साकार हों या निराकार हाँ, आप हों या काय हों, व साकार दिखने पर भी गुरु: शिकार हों, न गैसे भी हों, आपको नमस्कार है। इस तदात्म भाव से भक्ति की जाती है, तो अगत्य
अंग को झा देता है, जंग का अव हो जुत्त हो जाता है और भय तथा भनक भक्ति का विषय और भक्त दोनों) में अद्वैत (एकल) स्थापित हो जाता है। (हाथ में रण किया हुआ आपका युथ) परशु ज्ञान के तेज से तेजी है। (साधकों द्वारा) नित्य किया अनाना (अपका) मारम (उनके लिए
आपके हाथ में शरण किया हुआ) अंकुश (-स्वरूप) है (नित्य स्मरणरूपी अंकुश साधक के मंत्र रूपी हाधी को इधर-उधर होने और चहकने नहीं देता। इसे आपके इशा में रखता है। आप अपने भक्तों के मुड में अपने हाथ में रखें हुए आत्मानन्द स्वरुप सुरस (से युक्त अतिमधुर) मोदक का मास (फोर) डालते हैं। श्री एकन महाराजा कहते हैं- मेरे द्वार फिर हुआ ऐका सावन (स्तुति) सुनकर गजानन गणेशजी सन्तोष को प्राप्त हुए। मेरे भूख को बसाकर (उसे अपना निवासस्थान बनाकर) वे स्वयं यः
और इद (दोन) हो गए। (अर्थात् मह पर कही जानेवली त झन् गनेशनी द्वारा ही कभित है)। वे म प्र इस प्रकार सुप्रसन्न हो गये और उन्होंने घिन को ही निविन (बाधा को बाधा उत्पन्न करने की शक्ति से तहत) कर दिया (मेरा मग पूर्णतः निर्विघ्न हो गया। वे स्वयं (ज्ञान-गुर से प्रकट रूप में (मुसे) जौले- तुम श्री मात्राभं रामयण (रचना) को होगन चला (तुम इस ग्रन्थ हो रधना द्रुतगति से करो)।
श्रीसरस्वती-वन्दना- अथ देवी सरस्वती की वन्दन करें, जो (सात् चित्त की चेतन (स्वरुप) हा चैतन्य शक्ति हैं, जो समस्त प्रेरणओं के लिए प्रेरणा (स्यरूप) हैं, जिनका स्वरूप अमूर्ण (अ) की मूर्ति (२२) हैं। इस सरस्वती देवी का वाहन है; अत: उनके लिए (उपाधि स्वरूप 'से-वाहिनी" द ए है। फिर भी वे परमहंस, अर्थात् परमवस पद पर अटू हैं (ध। महान हामि के मन में उनका निशान है)। जो अर्थ (झव, विधार) गहन हैं, अति गुड़ (अतएव मुझ जैसे की को लिए पूर्णतः समाप्त के परे) हैं, उनको (कपा-पूर्वक) ३ (कवि द्वारा रचे मनेगाले) अन्य के अर्थ में पए (प्रकट) कराकर दिखाती हैं। वे अंश-अंश में महंस (स्वरूप) हैं। इनकी शोभा दिम-त शोभापमान है। वे शुद्धता-इन्वलता में (ज) रत्व गुण के परे हैं। (जिनका वर्ण विशुद्ध श्वेत-इण्यात माना जाता है। उनके अपने शरीर का वह (राद्ध जन्वल) शुभ्र (गौर) बर्न है। ॐा अनि) उनका (हाथ में मार किया हुआ वाद) बना है। उस ३-कार ध्वनि) की ',' '3' और 'म्' नमक तीनों गहन मात्राएँ उस (वी) के तन्तु हैं। समझए कि वेद-उपनिषदें उनके हाथे में पुस्तष-प में विराजमान हैं। ये (उमर पुस्तक द्वारा परमार्थ, अर्थात् अझज्ञान के नना अ को अर्थ प्राप्त कर हैं। में इस प्रकार अथाह रूप से अत सुन्दर हैं। उनको प्रभा (कान) परम अर्थ में (सचमुच) मनोहर हैं, शससे यह चराचर (विश्व) प्रकाश को प्राप्त हो जाता है। इनकी वह प्रभा जगत् के दृश्य-क्रम विता को मिया सिद्ध कर देती है। (श्री एकनाथ महाराज कहते हैं- मेरे द्वारा की हुई) ऐ । सुनकर देवी सरस्वती (झपर) बहु प्रसन्न हो गई। वाभाविक रूप से से उनका निवास मुख में होता है। उन्होंने बाणी (शमा रा यह कभन करा दिया। के यलो, 'तुम राम-का का गान करो (राम-कभी
की रणना करो। म (को रचना) को वेरा-पूर्वक श्रद्धा के साथ चला। वह सव (के अल) में । एता को प्राप्त होगी। मैं उसे मतों को प्रिय बना देंगी।

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4 Comments
  1. kadamtaal says

    अच्छी जानकारी प्रस्तुत की गई है। धन्यवाद।

  2. dipankar mandal says

    thank you for this book

  3. Sunil says

    Dawonlod nhi ho raha

    1. admin says

      link kaam kar raha hai, dobara koshish keejiye

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