बृहद विमानशास्त्र | Brihad Viman Shastra

बृहद विमानशास्त्र – महर्षि भरद्वाज | Brihad Viman Shastra – Maharshi Bharadwaj

बृहद विमानशास्त्र – महर्षि भरद्वाज | Brihad Viman Shastra – Maharshi Bharadwaj के बारे में अधिक जानकारी :

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पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 13.3 MB
कुल पृष्ठ : 368

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प्रकाशकीय निवेदन आर्य जगत् की शिरोमणि सावदेशिक आर्यप्रतिनिधि सभा की ओर से महर्षि भरद्वाजकृत तीन सहस्र श्लोकों से युक्त वृहदू विमानशास्त्र के भाषाभाष्य को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे बड़ी प्रसन्नता है।
यह पन्ध विमान-विद्याविषयक अलभ्य सामग्री से परिपूर्ण है जिसमें उक्त विद्या की बड़ी सूक्ष्मता से विवेचना की गई है। इस ग्रन्थ में विमानों के बहुसंगषक प्रका, नाम, उनके निर्माण और संचालन के विविध उपायों के वर्णन को पढ़कर मनुष्य आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सकता। निश्चय ही यह अन्य यन्त्रविणा और विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी क्रान्ति का सन्देशहर सिद्ध होगा।
रामायण में आए पुष्पक विमान का वर्णन विज्ञान के परिडतों द्वारा कपोल कल्पना और धर्मभीरु भोले भाले जन समाज के द्वारा देव चमत्कार समझा जाता था । आधनिक काल मैं जब वेदोद्धारक आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द ने वेदों के आधार पर इस विद्या की चर्चा की और अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका'' में एक अध्याय इस विषय के अर्पण किया तो वैज्ञानिकों को मुख्यतः पाश्चाय विद्वन्मएडली को विश्वास नहुषा । परन्तु भौतिक विज्ञान और गन्त्रविन की य ब प्रगति हुई त्यो त्यो मर्षि दयान के धन की प्रामाणिकता
और प्राचीन भारत में इस विवा के पूर्ण विकास की सम्भावनाए' प्रतिक्षित होती गई और वे अमरिका थामी विदुषी लिसे हीलर विलोक्ल के शब्दों में इन संभावना को निम्न प्रकार अभिध्यक्त करने के लिये विवश हुए :--
"हमने प्राचीन भारत के धर्म के विषय में सुना और पढ़ा है। यह उन महान् वेदों की भूमि है जहां अत्यन्त अद्भुत प्रग्ध हैं जिन में न केवल पूर्ण जीवन के लिए ही उपयोगी धर्मतत्व बताए गए हैं अपितु न सय का भी प्रतिपादन किया गया है जिन्हें समस्त विज्ञान ने साथ प्रमाणित किया है। बिजली, रेडियम, एलेक्ट्रन्स विमान ( हवाई जहाज ) आदि सब चीजें वेदों के द्रष्टा ऋषियों को ज्ञात प्रतीत होती हैं।"
अर्वाचीन काल में राइट बन्धुओं को वायु–यान के आविष्कार का श्रेय प्राप्त है। जब उनके बनाए हुए विमान आकाश में जुटने लगे तव विज्ञानवेत्ताओं को दिक ज्ञान विज्ञान की प्रामाणिकता और महर्षि दयानन्द की स्थापनाओं की सत्यता को स्वीकार करना पड़ा।
महर्षि भरद्वाजत प्रस्तुत पन्थ में "निर्मध्य तद्वेदाम्बुधिं भाजो महामुनिः । नवनीतं समुदत्य

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12 Comments
  1. girish says

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  2. SHALABH MATHUR says

    error 404 not found …. aisa aata h bro … ise download karne se…. actually can’t able to download it due to 404 …. blah blah blah link was not found on this server… ,. /may be u should fix it ASAP/

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  3. Trashiv says

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  5. sunil gupta says

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  10. Jas says

    Update the link

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