चिंतन की चांदनी : देवेन्द्र मुनि हिंदी पुस्तक | Chintan Ki Chandni : Devendra Muni Hindi Book

चिंतन की चांदनी : देवेन्द्र मुनि | Chintan Ki Chandni : Devendra Muni

चिंतन की चांदनी : देवेन्द्र मुनि | Chintan Ki Chandni : Devendra Muni

चिंतन की चांदनी : देवेन्द्र मुनि | Chintan Ki Chandni : Devendra Muni के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : चिंतन की चांदनी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : devendra muni | devendra muni की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 4 MB है | पुस्तक में कुल 180 पृष्ठ हैं |नीचे चिंतन की चांदनी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | चिंतन की चांदनी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Chintan Ki Chandni | This Book is written by devendra muni | To Read and Download More Books written by devendra muni in Hindi, Please Click : | The size of this book is 4 MB | This Book has 180 Pages | The Download link of the book "Chintan Ki Chandni" is given above, you can downlaod Chintan Ki Chandni from the above link for free | Chintan Ki Chandni is posted under following categories Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 4 MB
कुल पृष्ठ : 180

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प्रात्मा का निर्मल जल-स्रोत प्राप्त करने के लिए भी विपयविकारो की परतें तोडनी होगी, तप-साधना करनी होगी.
हल्का-भारी
हल्की वस्तु पानी की सतह पर तैरती रहती हैं, और भारी उसकी तह मे डूब जाती है। कर्मों से हल्का आत्मा ससार रूपी समुद्र के ऊपर-ऊपर तैरता रहती है, और भारी आत्मा उसमे डूबकर गोते खाता रहता है. आत्मा को हल्का वनायो । भगवान महावीर का उद्घोष है--
'कसेहि अप्पाण, जहि अप्पाण-आत्मा को कृश करो, जीर्ण करो, वह हल्का होकर ससार समुद्र पर तैरता रहेगा।
अपनी पहचान | जिसने स्वयं को पहचान लिया, उसने भगवान को भी पहचान लिया. शात्म-ज्ञान ही भगवद् ज्ञान है भगवान महावीर ने इसी सत्य को यो व्यक्त किया है
“जे एग जाणई, से सव्व जाणः” जो एक को जान लेता है, वह सव को जान लेता है। उपनिषदो ने आत्म-ज्ञान को सर्वज्ञता का रूप देते हुए कहा है
“यस्मिन् विज्ञाते सर्वमिद विज्ञात भवति" जिसको जान लेने पर सब कुछ जान लिया जाता है। मेरे प्रात्मन् ! तुम सर्व प्रथम अपने को पहचानो ! अपनी अनन्त शक्तियों को भान करो ! एक हो पैतन्य जिस प्रकार तकिये ६ चोल - गिना रन-बिरगे होते हैं, किन्नु भीतर में हैं सच में एक समान सफेद ही रनी है.
पर सद

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