चुल्लू भर पानी : सत्यप्रकाश अग्रवाल | Chullu Bhar Pani : Satyaprakash Agrawal

चुल्लू भर पानी : सत्यप्रकाश अग्रवाल | Chullu Bhar Pani : Satyaprakash Agrawal

चुल्लू भर पानी : सत्यप्रकाश अग्रवाल | Chullu Bhar Pani : Satyaprakash Agrawal के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : चुल्लू भर पानी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Satyaprakash Agrawal | Satyaprakash Agrawal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 10.5 MB है | पुस्तक में कुल 95 पृष्ठ हैं |नीचे चुल्लू भर पानी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | चुल्लू भर पानी पुस्तक की श्रेणियां हैं : comedy

Name of the Book is : Chullu Bhar Pani | This Book is written by Satyaprakash Agrawal | To Read and Download More Books written by Satyaprakash Agrawal in Hindi, Please Click : | The size of this book is 10.5 MB | This Book has 95 Pages | The Download link of the book "Chullu Bhar Pani" is given above, you can downlaod Chullu Bhar Pani from the above link for free | Chullu Bhar Pani is posted under following categories comedy |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 10.5 MB
कुल पृष्ठ : 95

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आत्मविभोर हो गये। इस ऐतिहासिक घटना की साक्षी को सारा शहर एकत्र हो गया था। लगता था जैसे जन-सैलाब उमड़ आया हो। इस अथाह जन-सागर को देख नेताजी की आत्मा तृप्त हो गयी। अंतिम क्षणों में सही, आज सारा शहर उनके साथ था। मंत्रमुग्ध हो उन्होंने माइक संभाला और हदय की गहराइयों से स्वर उठाया, "मेरे प्रिय नगरवासियो, आप यह जरूर जानना चाहेंगे कि आखिर आपके प्रिय नेता ने चुल्लू भर पानी में डूब मरने का यह कठोर निर्णय क्यों लिया? आखिर ऐसे क्या हालात पैदा हुए, क्या समस्याएं आयीं कि में आज आपके सामने डूब मरने के लिए सहर्ष तत्पर हूं और यह भी चुल्लू भर पानी में? इन अंतिम क्षणों में मैं आपसे झूठ नहीं बोलूंगा। कहते हैं वैसे भी मरता हुआ आदमी कभी झूठ नहीं बोलता। इसलिए कोई भी डाइंग-डिक्लेरेशन को पूर्ण मान्यता और सम्मान देती हैं। मैं स्वेच्छा से आपसे वादा करता हूं कि जीवन के इन आँतम क्षणों में मैं आपसे जो कुछ कहूंगा, सच कहूंग, और सच के अलावा कुछ नहीं कहूंगा।'
कहकर नेताजी कुछ क्षण को रुके। उनका गला भर आया था। पहली बार सच बोलने के लिए, उन्हें विशेष प्रयत्न करना पड़ रहा था। भीड़ ने सांसें रोक ली थीं। नेताजी के मुंह से झूठ सुनने की तो वह अभ्यस्त थी, आज पहली बार सच सुनने के लिए उसे भी अपने आपको तैयार करना पड़ रहा था। । नेताजी ने पुनः प्रारंभ किया, “मित्रो, आपने मुझे चुनाव जितवाया-केवल अपने स्वार्थ के लिए। आप मुझसे अपने देश का, अपने नगर का और अपना विकास करवाना चाहते थे। इसमें भी पहले अपना, फिर अपने नगर का और बाद में देश का। आपने जब मुझे अपनी वोट देकर जिताया तो क्या आपके मन में यह आकांक्षा नहीं थीं कि मैं आपके काम आऊंगा। जैसे वोट देते समय आपके मन में कुछ आकांक्षाएं थीं, उसी तरह वोट लेते समय मेरे मन में भी कुछ आकांक्षाएं थीं, अपने लिए। आप कहते हैं कि मैं आपकी आशाओं पर खतरा नहीं उतरा। ठीक है, पर क्या आपको पता है कि अभी तक में अपनी आकांक्षाओं पर भी खरा नहीं उतर सका हूं। आपका यह आरोप सही है कि चुनाव के लिए तैयार होने से पहले मैंने अपने

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