दयानंद वचनामृत : स्वामी सत्यानंद | Dayanand Vachanamrita : Swami Satyanand Saraswati | के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : दयानंद वचनामृत है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Satyanand Ji | Satyanand Ji की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Satyanand Ji | इस पुस्तक का कुल साइज 5.5 MB है | पुस्तक में कुल 114 पृष्ठ हैं |नीचे दयानंद वचनामृत का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | दयानंद वचनामृत पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu
Name of the Book is : Dayanand Vachanamrita | This Book is written by Satyanand Ji | To Read and Download More Books written by Satyanand Ji in Hindi, Please Click : Satyanand Ji | The size of this book is 5.5 MB | This Book has 114 Pages | The Download link of the book "Dayanand Vachanamrita" is given above, you can downlaod Dayanand Vachanamrita from the above link for free | Dayanand Vachanamrita is posted under following categories dharm, hindu |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
प्रारम्भिक वचन । मेरा चिरकाल से यह विचार था कि महर्षि दयानन्द के एक एक विषय के वचनों का संग्रह कर के श्रीमद्भक्तों को भेंट किया जाय, जिस से, अलग अलग विषयों पर प्रशंसित स्वामी जी के तपदेशों का लाभ उठाया जा सके। यह “श्रीदयानन्द-वचनामृत नामक पुस्तक उन्हीं विचारों का परिणत फल है। सत्यार्थ-प्रकाश, ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका, संस्कार-विधि, आर्थ्याभिविनय, आय देश-रत्नमाला, व्यवहारभानु, गोकरुणानिधि, और पूने के व्याख्यान आदि ऋषि-प्रणीत पुस्तकों से और श्रीमद्दयानन्द-प्रकाश से महाराज के वचन-विन्दु संग्रह कर के यह अमृत प्रस्तुत किया गया है । मुझे पूर्ण आशा है कि महाराज के प्रेमी भक्तों का ये अमृत-विन्दु बड़े मीठे, अति म्वादु और अतिशय सुखदायक प्रतीत होंगे।
महाराज के इस वचन-संग्रह में मैंने कहीं तो उनके अपने हा शब्द ज्यों के त्यों रख दिये हैं, कहीं किसी वाक्य को सरल बनाने के लिये अपनी ओर से यदि, तथा, ही, आदि उपसर्ग जोड़ दिये हैं, और कहीं कहीं किसी जटिल पंक्ति का स्वतंत्र अनुवाद भी कर दिया है। इस प्रकार यह 'वचनामृत श्रीमहाराज के वचनों का एक प्रकार का अनुवाद ही समझा जाना चाहिए । परन्तु इस में भावों की रक्षा पर पूरा पूरा ध्यान दिया गया है।
सत्यानन्द ।