धर्म और उसका अभिप्राय : महायोगी श्यामचरण नाहिड़ी | Dharma Aur Uska Abhipray : Mahayogi shyamcharan nahidi के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : धर्म और उसका अभिप्राय है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 16.4 MB है | पुस्तक में कुल 152 पृष्ठ हैं |नीचे धर्म और उसका अभिप्राय का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | धर्म और उसका अभिप्राय पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm
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उपर्युक्त सभी अवस्थायें तथा गुण ब्रह्म को गन से धारण करने या युक्त करने पर ही प्राप्त होती है। अध्ययन अध्यापन से यह अवस्था प्राप्त करना शंभर नहीं है। गुरु से ब्रह्मविद्या की दीक्षा प्राप्त कर इस वैज्ञानिक साधना पद्धति का अनुशरण कर लम्बे समय तक अभ्यास करने के बाद साधक मल को अह्म से युक्त कर पाते हैं। इसका अत्यन्त श्रेष्ठ उदाहरण है कबीरदास । कबीरदास ने कागज छुआ नहीं और कलम शाम में गई नहीं अति अध्ययन अध्यापन उनके द्वारा भी हुआ ही नहीं। गुरु से दीक्षा प्राप्त कर मन को ब्रह्मा के साथ युक्त करने में वे सफल हुए तथा इस अवस्था के सभी गुण उनको प्राप्त हुआ। अहा के साथ मन के युक्त होने पर ही अवस्था तथा गुण प्राप्त होते हैं उन सभी का वर्णन उन्होंने काशी की प्रभलित जनभाषा के कामों में मर्मभेदी तया अति सुन्दर ग से साधना के अनुभवों का वर्णन किया है। भारतीय धर्मशास्त्रों में वर्णित अविद्या के अनुभवी का आरम्भ से लेकर अन्त तक भारतीय धर्मशास्त्रों में कदम-कदम पर जैसा हुआ है उसी के समानान्तर विना पढ़े-लिखे मबीर द्वारा बड़े गुड़ गुणा सुन्दर ढंग से किया गया है।