महामानव बुद्ध : राहुल सांस्कृत्यायन | Mahamanv Buddha : Rahul Sanskrityayan

महामानव बुद्ध : राहुल सांस्कृत्यायन | Mahamanv Buddha : Rahul Sanskrityayan

महामानव बुद्ध : राहुल सांस्कृत्यायन | Mahamanv Buddha : Rahul Sanskrityayan

महामानव बुद्ध : राहुल सांस्कृत्यायन | Mahamanv Buddha : Rahul Sanskrityayan के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : महामानव बुद्ध है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Rahul Sanskrityayan | Rahul Sanskrityayan की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 14.7MB है | पुस्तक में कुल 185 पृष्ठ हैं |नीचे महामानव बुद्ध का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | महामानव बुद्ध पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, dharm

Name of the Book is : Mahamanv Buddha | This Book is written by Rahul Sanskrityayan | To Read and Download More Books written by Rahul Sanskrityayan in Hindi, Please Click : | The size of this book is 14.7MB | This Book has 185 Pages | The Download link of the book "Mahamanv Buddha" is given above, you can downlaod Mahamanv Buddha from the above link for free | Mahamanv Buddha is posted under following categories Biography, dharm |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 14.7MB
कुल पृष्ठ : 185

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हामानव बुद्ध लिये भेजा। अम्बद्ध के रोम-रोम में भागों का अभिमान रह कर भरा हुआ था। यह पुढे शिर माते गंडकों को भी कुछ निगाह से देखता था । क्यों के साथ उसे का अनुभव हुआ था, जिसके कारण अल-भुना था। बुद्ध के पास जाकर जरा भी शिष्टाचार दिखाये बिना डालते हुये बुद्ध के शम ३९ कर बातें करने गया । ष्टाचार को इस तरह उल्लंघन देखकर सुद्ध ने पूछा
'बम्ब, क्या इ अाचार्य माशों के होश ऐसे ही बातचीत की जाती है?
अन्धछ –'भ, पर मुंडक, अमों ( साधु ), इभ्यों ( श.al ), त, म के पैर की सन्तानों के साथ ऐसे री बातचीत की जाती है, जैसे कि अापके साथ।
बुद्ध ने कहा-'अप्ठ, तूने गुरु ने बाग बाण न किया है, बिना बास किये हैं गुरुकुल-मन का अभाभी हैं।
अम्बष्ठ पो पर शत लग गई। वह सुनाते हुये भगवान को ता। देते बा-'में मौतम, शाक्य गति पर है। शाक्य जाति दुइ है। शाम प्रति बफादी हैं। इन्य (नीच ) होने से शाक्य नामों का आकार नहीं करते । वह अनुचित है, जो इभ्व शक्य मामों का सम्मान नहीं करते।
भगवान् ने पूजा-अम्बष्ठ, शाज्यों में ले। क्या बिगाड़ा ?
ब्रम ने जवाब दिया- 'तम, एक समय में आचार्य ब्रा का गमरण के किसी काम से कामना गया। संस्थागार ( संदभवन) में बहुत से शल्प और शाम कुमार ने स्थानों पर 38 थे। वह मुझ पर ही मानो इंसते एक दूसरे के साथ परिहास कर रहे थे, किसी ने मुझे अशन पर बैठने को नहीं कहा । तो यह अनुचित है, न य श स का सम्मान नहीं करते।'
बानन बुद्ध बुद्ध ने कहा-'अम्छ, वा चिहिया भी अपने घोंसले पर बन्द जाप करती है। कपिलवस्तु नी का अपना है। अम्बष्ठ, इत थोडी सी बातपर तुम्हें मपं नई ५रा चाहिये ।।
वनप्छ । फिर भी स’-फट होकर यही बात रोहराई । अद ने पूछा-धम्म, तुम्हारा या गोत्र है ? | * * * ।।
बुद्ध ने कह=' , नाम-गोर के असर कम तुम्हारे । आर्यपुत्र होते हैं, और तुम शाक्यों के दासी-पुष ।' अब गे पुरानी मरम्परा सुनाई, 4 बजाया गया था, कि इसने अपनी प्यारी रानी की बात में के बाने पार बसे तमकों को वनवास में दिया। नही माप के पास एक शीश (स.) के वन म क म । उनको ही सन्ता। [ये । इनानु राना की श नाम की एक इनी थी, जिसे एक का पैदा हुया, जिनका नाम १ ।। इनकी ही सन्तान छावन ब्राह्मण हैं। अब इस परम्परा को
नाता था, इनर कैसे कर सकता ? अब के साथ भी माये छन इन्ला मचाने लगे-'अम्बष्ठ दासी-पुत्र है।' द ने समझाया, *छात्रो, अव को दान-पुत्र कह कर मत गना। नई कृष्ण मन वि थे। उनको चिया चौर तेज़ के सामने मुझ र इना को अपनी अति सुन्दरी हुरूपी न्श देनी पड़ी।
शुद्ध अभिव कप भी बोलते थे, किन्तु किसी को न पहुंचाने के शिने नह।
s६ शशि , शान्ति- चाचा थे । शाक्य र के अपने कुल के थे थोर कोनों में उनका ननिहाल था। दोनों के बीच रोहिणी नदी बहती थी—आज भी नेपाल की तराई और गोरखपुर में बहने बाती इस नदी का बडी नाग है। दोनों बार-बष रोहिणी के पानी से सिंचाई करते थे। के महीने में खेती को आते देश दोनों नगरों के

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