फादर कामिल बुल्के की जीवनी : दिनेश्वर प्रसाद | Father Kamil Bulke Ki Jivani : Dineshwar Prasad | के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : फादर कामिल बुल्के की जीवनी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dineshwar Prasad | Dineshwar Prasad की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Dineshwar Prasad | इस पुस्तक का कुल साइज 3.9 MB है | पुस्तक में कुल 118 पृष्ठ हैं |नीचे फादर कामिल बुल्के की जीवनी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | फादर कामिल बुल्के की जीवनी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography
Name of the Book is : Father Kamil Bulke Ki Jivani | This Book is written by Dineshwar Prasad | To Read and Download More Books written by Dineshwar Prasad in Hindi, Please Click : Dineshwar Prasad | The size of this book is 3.9 MB | This Book has 118 Pages | The Download link of the book "Father Kamil Bulke Ki Jivani" is given above, you can downlaod Father Kamil Bulke Ki Jivani from the above link for free | Father Kamil Bulke Ki Jivani is posted under following categories Biography |
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आमुख
फादर कामिल बुके उन यशस्वी साहित्यकारों और भारतथिदों में हैं, जिनके विषय में, सन्दर्भ-भेद से, तुलसी की यह उक्ति एकदम सही उतरती है-उपजहि अनत, अनंत छवि लहहीं (उत्पन्न कहीं होते हैं, शोभा कहीं और पाते हैं। उनका जन्म भले ही बेल्जियम में हुआ हो, कीर्ति तो उन्हें भारत में ही मिली थीं। उनका व्यक्तित्व पश्चिम और पूर्व के प्रीतिकर सम्मिलन तथा ईसाई और भारतीय परम्पराओं के मैत्रीपूर्ण संवाद का प्रतीक है। वे बाइबिल (पुराना विधान के नबी मिरमियाह द्वारा उल्लिखित उस दाखलता की तरह हैं, जो एक द्वीप से दूसरे द्वीप को जोड़ती है।
यपि उनसे पहले भी भारतीय विषयों पर कई यूरोपीय विद्वानों ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया, किन्तु उन्होंने इनका विवेचन मुख्यतः अंग्रेजी या किसी अन्य यूरोपीय भाषा में किया। उनमें से कुछ ही विद्वानों ने भारतीय भाषाओं को अपनी अभिव्यथित का माध्यम बनाया। बाइबिल के प्रारम्भिक हिन्दी अनुवादक और ईसाई धर्म के हिन्दी प्रचार साहित्य के प्रारम्भिक लेखक यूरोपीय ही थे; किन्तु फ़ादर कामिल बुल्य की स्थिति इन सबसे बहुत भिन्न है। आबश्यक होने पर उन्होंने अंग्रेज़ी में भी लिखा है, किन्तु उनकी अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम हिन्दी है। उनके अधिकांश सर्वोत्तम लेखन की भाषा यहीं हैं। हिन्दी में ही उन्होंने अपने विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ रामकथा : उत्पत्ति और विकास (1950 ई.) की रचना की है, जिसके विषय में उनके गुरु और प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने यह लिखा है :
*यह ग्रन्थ वास्तव में रामकथा-सम्बन्धी समस्त सामग्री का विश्वकोश कहा जा सकता है।...वास्तव में यह खोजपूर्ण रचना अपने ढंग की पहली ही है। हिन्दी क्या किसी भी यूरोपीय अथवा भारतीय भाषा में इस प्रकार का कोई दूसरा अध्ययन उपलब्ध नहीं है।” (परिचय :6)।
इस ग्रन्थ ने रामकथा के इतिहास और स्वरूप-सम्बन्धी प्रचलित मुतवादों, इसकी विभिन्न परम्पराओं, इसके अन्तरराष्ट्रीय प्रसार और प्रभाव आदि का पहली बार उद्घाटन किया है। स्वभावतः इसने भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण भाग अर्थात् राम-साहित्य की पूरी समझ को प्रभावित और परिवर्तित किया है। स्वयं फ़ा, युके ने ३१ गून्य के माध्यम से नवाले प्रमुख प्रश्न-इस कथा को निरन्तरता पर अपने परयत निवन्धों में भी विचार किया है।
yar mujhe 1000000000 rupes chahiye plz d do
aap ka bhut dhaniy bad hoga