गांधीजी की छत्रछाया में | Gandhi Ji Ki Chhatra Chhaya Mein

गांधीजी की छत्रछाया में | Gandhi Ji Ki Chhatra Chhaya Mein

गांधीजी की छत्रछाया में | Gandhi Ji Ki Chhatra Chhaya Mein के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : गांधीजी की छत्रछाया में है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ghanshyam Das Bidla | Ghanshyam Das Bidla की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 17 MB है | पुस्तक में कुल 418 पृष्ठ हैं |नीचे गांधीजी की छत्रछाया में का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | गांधीजी की छत्रछाया में पुस्तक की श्रेणियां हैं : history

Name of the Book is : Gandhi Ji Ki Chhatra Chhaya Mein | This Book is written by Ghanshyam Das Bidla | To Read and Download More Books written by Ghanshyam Das Bidla in Hindi, Please Click : | The size of this book is 17 MB | This Book has 418 Pages | The Download link of the book "Gandhi Ji Ki Chhatra Chhaya Mein" is given above, you can downlaod Gandhi Ji Ki Chhatra Chhaya Mein from the above link for free | Gandhi Ji Ki Chhatra Chhaya Mein is posted under following categories history |


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पुस्तक का साइज : 17 MB
कुल पृष्ठ : 418

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मैं उनके सम्पर्क में किस प्रकार आया? मेरे जीवन की इस सौभाग्यपूर्ण घटना का एकमात्र श्रेय प्रारब्ध को ही मिलना चाहिए, जिसका रहस्यमय हाथ भीतर-ही-भीतर अपनी काम करता रहता है। मेरी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नही थी, इसलिए मैं इस योग्य कहाँ था कि किसी विश्वविख्यात व्यक्ति की दृष्टि में आ पाता। मेरा जन्म सन् १८९४ मे एक गाव में हुआ था, जिसकी जनसख्या मुश्किल से तीन हजार रही होगी। रेल, पक्की सडक या डाकघर के जरिये वोहरी दुनिया से सम्पर्क का कोई आधुनिक साधन उपलब्ध न होने के कारण हमारा गाँव राजनीतिक हलचल से एक प्रकार से विलकुल अलग सा था। यात्रा के साधन ऊट घोडे या बैली द्वारा चलनेवाले रथ थे। बैलो द्वारा चलनेवाले रथ विलास की वस्तु थे और साधा रणत सम्पन्न लोगो द्वारा महिलाओ और अपाहिजो के लिए रखे जाते थे । घोडा दुर्लभ जानवर था और अधिकतर भूस्वामियों द्वारा उसका उपयोग किया जाता था। हमारे परि वार मे तो बहुत अच्छे ऊँट थे और बाद में हमारे पास बैलोवाला एक रथ भी हो गया। किन्तु ऊट ही सदा यातायात का सबसे अधिक उपयोगी और लोकप्रिय माध्यम रहा। आजकल ऊट पर लम्बी यात्रा की मम्भावना को लोग कोई उत्साह के साथ नही देखते है। किन्तु अपनी सहन-शक्ति, धीरज और भोलेपन के कारण इस पशु ने मुझे सदा आकर्षित किया। मुझे याद है कि जब एक बार मुझे लगातार छह दिनो तक ऊट की पीठ पर यात्रा करनी पड़ी थी तो कितना आनन्द आया था ।

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