गीताज्ञान : दीनानाथ भार्गव | Geetagyan : Dinanath Bhargav के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : गीताज्ञान है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dinanath Bhargava | Dinanath Bhargava की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Dinanath Bhargava | इस पुस्तक का कुल साइज 48 MB है | पुस्तक में कुल 770 पृष्ठ हैं |नीचे गीताज्ञान का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | गीताज्ञान पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, Uncategorized
Name of the Book is : Geetagyan | This Book is written by Dinanath Bhargava | To Read and Download More Books written by Dinanath Bhargava in Hindi, Please Click : Dinanath Bhargava | The size of this book is 48 MB | This Book has 770 Pages | The Download link of the book "Geetagyan" is given above, you can downlaod Geetagyan from the above link for free | Geetagyan is posted under following categories dharm, hindu, Uncategorized |
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“गीता के अनेक प्रकार के तात्पर्य कहे गये हैं।''इन भिन्नभिन्न तात्पर्यो को देखकर कोई भी मनुष्य घबड़ाकर सहज ही यह प्रश्न कर सकता है
क्या ऐसे परस्पर विरोधी अनेक तात्पर्य एक ही गीता ग्रन्थ से निकल सकते हैं ? और यदि निकल सकते हैं तो इस भिन्नता का हेतु क्या है ?::भिन्न-भिन्न भाष्यों के आचार्य बड़े विद्वान् धार्मिक और सुशील थे। यदि कहा जाय कि शंकराचार्य के समान महातत्त्व-ज्ञानी आज तक संसार में कोई भी नहीं हुआ है, तो भी अतिशयोक्ति ने होगी। तब फिर इनमें और इनके बाद के आचार्यों में इतना मतभेद क्यों हुआ ? गीता कोई इन्द्रजाल नहीं है कि जिससे मनमाना अर्थ निकाल लिया जाय ? भगवान् ने अर्जुन को गीता का उपदेश इसलिये दिया था कि उसका भ्रम दूर हो, इसलिये नहीं कि उसका भ्रम और
भी बढ़ जाय। गीता में एक ही विशेष और निश्चित अर्थ का उपदेश किया गया है और अर्जुन पर उस उपदेश का अपेक्षित परिणाम भी हुआ है। इतना सब कुछ होने पर भी गीता के तात्पर्यार्थ के विषय में इतनी गड़बड़ क्यों हो रही है ? | यह प्रश्न कठिन है, परन्तु इसका उत्तर उतना कठिन नहीं है जितना पहिले-पहल मालूम पड़ता है। समुद्र-मन्थन के समय किसी को अमृत, किसी को विष, किसी को लक्ष्मी, ऐरावत, पारिजात आदि भिन्न-भिन्न पदार्थ मिले; परन्तु इतने ही से समुद्र के यथार्थ स्वरूप का कुछ निर्णय नहीं होगया। ठीक इसी प्रकार साम्प्रदायिक रीति से गीतासागर को मथनेवाले टीकाकारों की अवस्था होगई है।''गीता के एक होने पर भी वह भिन्न-भिन्न सम्प्रदायवालों को भिन्न-भिन्न स्वरूप में दिखने लगी है।" ।
-लोकमान्य तिलक
हम आपके द्वारा किये गये हिंदी सेवा के इस साहसिक कार्य के लिए कृतग्य हैं.आपने जो दूर्लभ हिंदी पुस्तकें उपल्बध कराया है वास्तव में यह काबिले-तारिफ है.बस थोड़ा सा आपसे निवेदन है कि “वयस्क” वाले भाग जिसमें कुछ अश्लील पुस्तकें हैं को हटा कर तथा इसमे कुछ और धार्मिक पुस्तकों को डालकर इस साइट को पवित्र करने की कृपा करें जिससे यह साइट अधिक कल्याणकारी हो सके.
महोदय !
नमस्कार
दुर्लभ ग्रन्थों कि pdf प्रस्तुति के लिये आपका आभार
गीताज्ञान – दीनानाथ भार्गव का द्वितीय भाग प्रस्तुत करने कि कृपा करें ।
धन्यवाद ।