गुरु ग्रन्थ साहिब की प्रमुख वाणियां हिंदी पुस्तक | Guru Granth Sahib Ki Pramukh Vaniyan Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
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गाए मुस्वाणी-इर | अनुशंसा में रहना चाहिए सत्य की सत्ता की अनुभूति का यही एक- मात्र मार्ग है - जो अनन्त काल से जीव की उत्पत्ति से लेकर आज तक चला आ रहा है । भ£े २ शेड हुकमी होवनि आकार हुकमु न कहिआ जाई। हुकमी होवनि जीअ हुकमि मिले वडिआई। हुकमी उतमु नीचु हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि। इकना हुकमी बखसीस इकि हुकमी सदा भवाईअहि। हुकमे अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ। नानक हुकमे जे बुझे त हउमै कहै न कोइ। परमात्मा के हुकुम की कोई व्याख्या सम्भव नहीं है परम की इच्छा की कोई शाब्दिक अभिव्यक्ति नहीं हो सकती | विश्व के सभी रूप-आकार उसी की इच्छा द्वारा सृजित हैं । उसी के हुकुम से विभिन्न जीवों को अलग-अलग योनियों को धारण करना होता है और उसकी स्वेच्छा से ही जीव बड़े-छोटे आकार और पद प्राप्त करते हैं । हुकुमी अर्थात् परमात्मा हुकुम देनेवाला इच्छुक की इच्छा से ही जीव उत्तम-नीच योनी में आता और दुःख-सुख को प्राप्त होता है । परमात्मा जिस पर कृपा कर देता है उसे आत्म-पद देकर मुक्त करता है और अन्य को जन्म-मरण के आवागमन में भी उसी की ही इच्छा से रहना होता है । तात्पर्य यह कि विश्व का प्रत्येक कार्य-व्यापार और व्यवहार उसके हुकुम में बंधा है उससे बाहर कुछ भी नहीं । यदि जीवात्मा इस तथ्य को सही परिप्रेक्ष्य में पहचान ले और सब दशाओं में इंश्वर का हुकुम सिर-माथे पर धारण करे तो वह अहंकार के परिवेश मैं करता हूँ मैं करूँगा आदि से मुक्त होता है ।