हम सभ्य औरतें | Ham Sabhya Auraten

हम सभ्य औरतें : मनीषा | Ham Sabhya Auraten : Maneesha

हम सभ्य औरतें : मनीषा | Ham Sabhya Auraten : Maneesha के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : हम सभ्य औरतें है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Maneesha | Maneesha की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 8.1 MB है | पुस्तक में कुल 244 पृष्ठ हैं |नीचे हम सभ्य औरतें का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | हम सभ्य औरतें पुस्तक की श्रेणियां हैं : Uncategorized, others

Name of the Book is : Ham Sabhya Auraten | This Book is written by Maneesha | To Read and Download More Books written by Maneesha in Hindi, Please Click : | The size of this book is 8.1 MB | This Book has 244 Pages | The Download link of the book "Ham Sabhya Auraten" is given above, you can downlaod Ham Sabhya Auraten from the above link for free | Ham Sabhya Auraten is posted under following categories Uncategorized, others |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 8.1 MB
कुल पृष्ठ : 244

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लिखना मेरे लिए कभी मनोरंजन या टाइम पास को काम नहीं रहा, औरतों के प्रति जारी उपेक्षाओं, व्यवहार और रवैये से मैं खुद को कभी सतुष्ट नहीं कर पाई। दादी-नानी की उस बूढ़ी बीमार पीढ़ी से लेकर अपने उभारो को भरसक उचकाने में जुटी आज की पीढ़ी तक की स्थिति भुझे जब-न-तब झकझोरती है, बल्कि कई दफा सदमे की स्थिति में ला पटकती है। बिना किन्हीं आंदोलनों या वैचारिक बहस के आधुनिकीकरण की दौड़ में भागती-फिरती हम औरतों की भीड़ अभी तक अपना मुकाम नहीं तय कर पाई है। मेरी लेखनी का मतलब यह न लगाया जाए कि मैं औरतों को 'मर्द' बनाने की पक्षधर हूं। मर्द होना या मर्दो के बराबर खड़ा होना तो पहला चरण है, जिसकी हमारी कौम को खास जरूरत नहीं। मर्दो को उतनी ही तवज्जो दी जानी चाहिए, जितनी किसी विपरीत लिंगी के लिए प्राकृतिक रूप से जरूरी है। ‘काया' की इस पारंपरिक-प्रचलित गाथा को तोड़ना और 'काया-कंट-कोख' के चक्र को पछाडना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। अपनी सुविधानुसार मर्दनात ने औरत को केवल लिंग के आधार पर इतना धकियाया और उपेक्षित किया है कि वह खुद को मानसिक रूप से बधिया मान बैठी। शीर्षक पर आपत्ति करने वाले विद्वानो से मैं बता देना चाहती है, चूंकि मैं कोई विद्वान या भाषाई खिलंदड नहीं, इसलिए जो मैने या मेरी इस पूरी कौम की एक भी औरत ने महसूसा उसे ‘जो है, जैसा है' रखने की कोशिश की। औरतों को धर्म, वर्ग, क्षेत्र या देश में बांटने वाले नहीं जानते कि हम तीन अरब औरतों की पीड़ा, दु:ख, क्षोभ, उपेक्षाएं, त्रासदियां सब एक हैं, बस औसत कम या ज्यादा हो सकता है।
औरतो को ‘काया' की कैद में कसने की वाहियात मर्दानी कोशिशों का नतीजा है कि पढ़ी-लिखीं समझदार औरतें भी इसके मकड़जाल से खुद को छुड़ा नही पाती, बल्कि उदारीकरण और वैश्वीकरण की चकाचौंध ने उसे इस दलदल में और धसाया ही है। यह तय है कि सिर्फ कागज़ और कलम क्रांति नहीं कर सकते, न ही आक्रामक विचारों से स्थितियां बदल जाएंगी मगर लिंगाभिमानी
मेरी बात • 5

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