हमारी उलझन : भगवती चरण वर्मा हिंदी पुस्तक | Hamari Uljhan : Bhagvati Charan Verma Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : हमारी उलझन है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Bhagwati Charan Verma | Bhagwati Charan Verma की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Bhagwati Charan Verma | इस पुस्तक का कुल साइज 7.74 MB है | पुस्तक में कुल 122 पृष्ठ हैं |नीचे हमारी उलझन का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | हमारी उलझन पुस्तक की श्रेणियां हैं : inspirational, Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Hamari Uljhan | This Book is written by Bhagwati Charan Verma | To Read and Download More Books written by Bhagwati Charan Verma in Hindi, Please Click : Bhagwati Charan Verma | The size of this book is 7.74 MB | This Book has 122 Pages | The Download link of the book "Hamari Uljhan" is given above, you can downlaod Hamari Uljhan from the above link for free | Hamari Uljhan is posted under following categories inspirational, Stories, Novels & Plays |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
इशवर ३ इशवर के रुप का समझ लेना-दूसरों के बासते नहीं बलकि अपने वासते | हम चनते हे-- तो दमें बनाने वाला भा कोई होगा जो हमें बनाने वाला है बददी ईशवर हैं--यह में माने लेता हूँ । दम सिटते हैं- तो हमें मिटाने वाला भी कोई होगा जं। हमें मिटाने वाला है बददी ईशवर है--यदद भी मैं माने लेता हूँ । पर इस घनाने और मिटाने वाछे ईशवर पर विशवास करते अधवा अविशवास करने से दोता कया है? इस बनने और सिटनेवालों को उस बनाने शौर मिटाने वाले से कया सरोकार ? हमें ता सरोकार इस बात से हैं कि वह हमें कयों बनाता है झोर कयों मिटाता है ? कलाकार एक चितर बनाता है और चितर में अपूणता होने पर वहद उस चितर को मिटा देता है- इसके बाद वह फिर उस चितर को बनाता है । और चितर का मिटना-चनना उस समय तक जारी रददता है जब तक चितर पूरव रूप से न बन जाय | चितर और मनुषय में भेद केवल इतना दै कि जहाँ चितर निरजीव है वहाँ मनुषय सजीव है जहाँ चितर सवयं बन-विगड़ नहीं सकता वहाँ मनुषय अपनी बुदधि दवारा सवयं चन-विगड़ सकता है ओर चाहे हम सवयं बनने-बिगइने वाछे ईशवर हों या हमें बनाने अथवा बिगाढ़ने वाला ईशवर कोई दूसरा हो हम इतना जानते हैं कि हमें बनकर और विगड़कर समपूरण बनना है ।